कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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जरा रुक ऐ मनुष्य,
किसलिए यूँ दौड़ लगाते हो ?
क्षणिक सुख पाने के लिए,
क्यों अपना सर्वस्व गवाते हो ?
इसलिए ऐ मनुष्य, जरा रुक…
जरा रुक विश्राम कर,
अपने अंतर्मन का ध्यान कर
क्या लेकर आए थे,
जिसके खोने का है डर ?
क्यों है तू इतना बेकल ?
इसलिए ऐ मनुष्य, जरा रुक…
जरा रुक विचार कर,
अपने मोह का त्याग कर
खाली हाथ ही आए थे,
खाली हाथ ही जाना है
तो क्यों सुबह-शाम दौड़ लगाना है ?
इसलिए ऐ मनुष्य, जरा रुक…
जरा रुक ध्यान कर,
अपने कर्मों का अनुसंधान कर
अपना चरित्र निर्माण कर,
मात-पिता को प्रणाम कर
और गुरुजनों का सम्मान कर।
इसलिए ऐ मनुष्य, जरा रुक…
जरा रुक नमन कर,
मातृभूमि का स्मरण कर
ईशदेवों का वंदन कर,
मानवों का अभिनंदन कर
और प्रकृति का संवर्धन कर।
इसलिये ऐ मनुष्य, जरा रुक…
जरा रुक ख्याल कर,
देश के लिए कुछ त्याग कर
नूतन अनुसंधान कर,
वसुधा का कल्याण कर।
फिर यहाँ से प्रस्थान कर,
इसलिए ऐ मनुष्य, जरा रुक…॥