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जागरूक करने और महत्व समझाने की बड़ी आवश्यकता

ललित गर्ग

दिल्ली
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)….

‘विश्व पर्यावरण दिवस’ हर साल ५ जून को मनाया जाता है। इंसानों को प्रकृति, पृथ्वी एवं पर्यावरण के प्रति सचेत करने के लिए यह मनाया जाता है और देश एवं दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की याद दिलाई जाती है। सर्वविदित है कि इंसान व प्रकृति के बीच गहरा संबंध है, पर इंसान के लोभ, सुविधावाद एवं तथाकथित विकास की अवधारणा ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण न केवल नदियाँ, वन, रेगिस्तान, जलस्रोत सिकुड़ रहे हैं, बल्कि हिम खण्ड भी पिघल रहे हैं। तापमान का ५० डिग्री पार करना विनाश का संकेत तो है ही, जिनसे मानव जीवन भी असुरक्षित होता जा रहा है। इस वर्ष बढ़ी हुई गर्मी एवं तापमान ने न केवल जीवन को जटिल बनाया, बल्कि अनेक लोगों की जान भी गई। वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियाँ गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं।

वैश्विक तापमान की वजह से हिमखंड तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं, जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों-महानगरों के डूबने का खतरा है।

यह खास दिन हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने एवं उसके प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रेरित करता है। मानवता भूमि पर निर्भर है, फिर भी पूरी दुनिया में प्रदूषण, जलवायु अराजकता और जैव विविधता विनाश का एक जहरीला मिश्रण स्वस्थ भूमि को रेगिस्तान में बदल रहा है।

वैश्विक तापमान का खतरनाक प्रभाव अब साफ तौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि, गर्मी अब आग उगलने लगी है और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। असंतुलित पर्यावरण विनाश का कारण बन रहा है। आजकल जब उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्से गर्मी से तप रहे हैं, तब पश्चिम बंगाल और केरल में भयानक बारिश हो रही है। इस तरह एकसाथ इतनी तेज बारिश से नुकसान होता है। बढ़ते शहरीकरण, विकास योजनाओं और जिंदगी से जुड़े हर क्षेत्र में पानी की जरूरतें बढ़ रही है, दूसरी तरफ पानी के कुदरती स्रोत कम होते जा रहे हैं। हमें पानी के इस्तेमाल के तौर-तरीकों में तुरंत बदलाव करते हुए संयम बरतने की जरूरत है।

इधर, तापमान का ५० डिग्री पार करना गंभीर पर्यावरणीय घटना है। फ्रिज, ए.सी., कूलर और कारों की बिक्री बढ़ने से बिजली की खपत बढेगी। यह स्थिति कोयले, पेट्रोल, डीजल के इस्तेमाल को बढ़ाएगी। ऐसे में धरती और गर्म हो जाएगी। इससे दिहाड़ी मजदूर, किसान और मेहनतकश लोगों को जूझना पड़ रहा है, वहीं ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में पानी की कमी हो रही है तो सूखी जगहों पर बेतहाशा बारिश। इन घटनाओं की वजह को समझना होगा, गंभीरता से लेना होगा।

जलवायु परिवर्तन के अलावा कई समस्याएं मानव निर्मित भी है। माना कि बादल फटने, जंगलों में आग जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन अपेक्षाकृत नए माने जाने वाले हिमालय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में नए बांध और सड़क बनाए जाने से होने वाले नुकसान ज्यादा सामने आ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन ऐसा मसला है, जिसमें पर्यावरण से होने वाला खतरा किसी देश की सीमा या उसकी हैसियत नहीं देखता। सबको बराबर नुकसान होता है। इसलिए विश्व के सभी देशों को अपने-अपने स्वार्थों को नजरअंदाज करते हुए विश्व मानवता को केन्द्र में रखना जरूरी है। कई बिंदुओं पर दुनिया पीछे जा रही है। युद्धों का पर्यावरण पर सबसे घातक असर पड़ता है और यही जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण भी बनते हैं। पर्यावरण का अर्थ संपूर्ण प्राकृतिक परिवेश से है जिसमें हम रहते हैं। इसमें हमारे चारों ओर के सभी जीवित और निर्जीव तत्व शामिल होते हैं, जैसे- हवा, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, जानवर और अन्य जीव-जंतु। पर्यावरण के घटक परस्पर एक-दूसरे के साथ जुड़कर एक समग्र पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। हालांकि, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और मानव जीवन-शैली के लिए इनके गलत उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। दूषित पर्यावरण उन घटकों को प्रभावित करता है, जो जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। ऐसे में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने, प्रकृति और पर्यावरण का महत्व समझाने की आज बड़ी आवश्यकता है, इस दृष्टि से विश्व पर्यावरण दिवस मनाना केवल आयोजनात्मक न होकर प्रयोजनात्मक बने, यह अपेक्षित है।

बदलते मौसम का हिमखंडों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। इसका खुलासा अमरीकन नेशनल अकादमी ऑफ साइंस ने किया है।

औद्योगिक गैसों के लगातार बढ़ते उत्सर्जन और वन आवरण में तेजी से हो रही कमी के कारण ओजोन गैस की परत का क्षरण हो रहा है। इस अस्वाभाविक बदलाव का प्रभाव वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तनों के रूप में दिखलाई पड़ता है। ये स्थितियाँ भारत में एक बड़े संकट का कारण बन रही है। ग्रीन हाउस गैसों के असर से पूरी दुनिया के साथ ही हिमालय भी गरम हुआ है।

भारत समेत पूरे विश्व में प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति खतरे में है। प्रकृति जीवन जीने के लिए किसी भी जीव को हर जरूरी चीज उपलब्ध कराती है। ऐसे में अगर प्रकृति प्रभावित होगी तो जीवन प्रभावित होगा।