श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हे कान्हा, कैसे जादुई बीन बजा लेते हो!
पल भर में सबको, मनमोहित करते हो।
बंसी की धुन सुन, मोरनी चली आतीं हैं,
तेरी बंसी की धुन, पनहारन को लुभाती है।
हे कान्हा, कैसे जादुई बंसी बजा लेते हो!
सौ-सौ महिला को, सौ रूप दिखाते हो।
तुम्हारी आहट पे, कामधेनु चली आती है,
तुम्हारे आने से, गरीबी भी भाग जाती है।
हे कान्हा, कैसे जादुई बंसी बजा लेते हो!
बंसी के प्रेम राग से, सुध-बुध हरते हो।
हे कृष्ण मुझे भी बंसी बजाना सिखाओ,
हम हैं तुम्हारी शरण में, दयाभाव दर्शाओ।
हे कृष्ण, मैं भी तो हूँ आपकी बाल सखा,
तुझसा प्रेम, रिश्तेदारों में भी नहीं देखा।
दया दृष्टि रखिए, अपने गरीब भक्तों पर,
आप सरकार हो, आप हो बड़े पालनहार।
हे कृष्ण, बजाइए प्रेम गीत भरी मुरली,
गीत सुनने के लिए ‘देवन्ती’ है पगली॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |