राधा गोयल
नई दिल्ली
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मानव जन्म मिला है तो जीवन को सफल कर ले,
सब प्राणी सुख से जी पाएँ, ऐसे काम कर ले।
जार-जार रोती है प्रकृति अपना दोहन देख,
क्या तुझको कुछ नजर न आता उसका रोदन देख ?
आज अमानव बना मनुज मानवता भूल गया,
धनलिप्सा के कारण जग के हित को भूल गया।
जंगल सभी काट डाले, तालाब पाट डाले,
कांक्रीटों के महल बनाकर अपने हित पाले।
पशु-पक्षियों के जीवन में आज पड़े लाले,
कहाँ बनाएँ बसेरा, कैसे अपना पेट पालें ?
पेड़ काट डाले तो आक्सीजन की कमी हुई,
छाँव कहीं भी नजर न आए, धरती दग्ध हुई।
धरती के दारुण रोदन से, मन ये विकल हुआ,
खुद को वचन दिया, और कुछ करने का ठान लिया।
प्रकृति प्रेम की दीवानगी का रंग जो ऐसा चढ़ा,
लोक कल्याण भावना लेकर घर से निकल पड़ा।
लोगों को समझाया मैंने कुछ ऐसा कहकर,
शुद्ध हृदय से बतलाया था भावों में बहकर।
क्या मानव के हित से तेरा स्वार्थ है अधिक बड़ा ?
कितना भी तू जोड़ ले, रह जाएगा यहीं पड़ा।
प्रकृति प्रेम के रंग में रंग जा, कर सबका कल्याण,
याद करेगा जग, जब जग से होगा तेरा प्रयाण॥