कुल पृष्ठ दर्शन : 194

You are currently viewing जिंदा हो क्या…??

जिंदा हो क्या…??

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
*********************************

चाहे हाँ कहो या ना कहो, कुछ तो तुम प्रतिक्रिया करो,
व्यवहार को सहज-सरल बनाकर, अपने विचार तो प्रकट करो ?
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो।

मुँह सिए तुम क्यों बैठे हो, क्यूँ सबको तकते रहते हो,
आखिर कैसी दुश्वारी है, क्या-क्या मन में भरे हुए हो ?
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो।

मन में कैसा असमंजस है, भाषा की क्या समझ नहीं है,
क्यूँ इतना लाचार हो गए, दुनिया से क्या हार गए हो ?
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो।

क्या गुनाह कोई किए बैठे हो, मुँह फुलाकर पड़े हुए हो,
चेहरे से मासूमियत टपक रही, आख़िर चाल कौन-सी बुन रहे हो ?
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो।

ज़िंदादिली से जीया करो ना, खिलखिला के हँस पड़ो ना
क्यूँ मातमी सूरत बनाए हुए हो, महफ़िल को गुलज़ार करो ना।
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो।

ज़िंदगी तो गुज़र रही है, रेत की तरहा फिसल रही है,
फिर पीछे पछतावा होगा, क्यूँ इतना ना समझ रहे हो ?
गर ज़िंदा हो तो… सबूत भी दो॥