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जीना सिखाती है दोस्ती

ललित गर्ग
दिल्ली
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मित्रता और जीवन….

मैत्री (मित्रता) दिवस के पीछे की भावना हर जगह एक ही है-मित्रता एवं दोस्ती का सम्मान। मैत्री का दर्शन बहुत विराट है, स्वस्थ निमित्तों की श्रृंखला में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बिना किसी आग्रह एवं स्वार्थ के जो मैत्री स्थापित करता है, वह सबके कल्याण का आकांक्षी रहता है, सबके अभ्युदय में स्वयं को देखता है और उसके जीवन में विकास के नए आयाम खुलते रहते हैं। इसमें अपने-पराए का भेद नहीं रहता, न प्रतिस्पर्धा और न छोटे-बड़े की सीमा-रेखा होती है। इतनी आदर्श स्थिति एवं महत्वपूर्ण होते हुए भी प्रश्न उभरता है कि आज मनुष्य-मनुष्य के बीच मैत्री भाव का इतना अभाव क्यों है ? ज्ञानी, विवेकी, समझदार होने के बाद भी आए दिन मनुष्य क्यों लड़ता झगड़ता है। विवादों के बीच उलझा हुआ तनावग्रस्त क्यों खड़ा रहता है। न वह विवेक की आँख से देखता है, न तटस्थता और संतुलन के साथ सुनता है। यही वजह है कि, पारिवारिक सहयोगिता और सहभागिता की भावनाएं टूट रही हैं। सामाजिक बिखराव सामने आ रहा है। ऐसे समय में दोस्ती का बंधन रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार करता है।
सुप्रसिद्ध अमेरिकी लेखक डेल कार्नेगी ने मित्र बनाने की कला पर एक पुस्तक में लिखा है-‘मेरी सारी संपत्ति लेकर मुझे कोई एक सच्चा मित्र दे दो।’ अमेरिकी धन कुबेर हेनरी फोर्ड का उदाहरण देते हुए लिखा है कि-‘उससे एक बार पत्रकारों ने पूछा-आपके पास अपार धन संपत्ति है, सभी सुख- सुविधाएं मौजूद हैं इतना सब होने पर आप जीवन में किस बात की कमी महसूस करते हैं ?’ हेनरी फोर्ड ने कहा-‘धन-संपत्ति के नशे में मैं एक भी सच्चा मित्र नहीं बना सका। फ्रेंडस बहुत मिले परन्तु वह फ्रेंडशिप केवल साथ खाने-पीने, मौज, शौक की ही थी। जो सच्चे दिल से मुझे चाहे और मैं उसे चाहूं, ऐसा एक भी मित्र मुझे नहीं मिला। यह मेरे जीवन की एक बहुत बड़ी रिक्तता एवं कमी है।’
मैत्री दिवस की आज ज्यादा प्रासंगिकता है, दक्षिण अमेरिकी देशों से शुरू हुआ यह त्योहार उरुग्वे, अर्जेटीना, ब्राजील, पराग्वे, भारत, मलेशिया, बांग्लादेश आदि दक्षिण एशियाई देशों सहित दुनियाभर में महीने के पहले रविवार को मनाया जाता है।
दोस्ती वह रिश्ता है जो आप खुद तय करते हैं, जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाए मिलते हैं। जरा सोचिए कि एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं, तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह रिश्ता कितना खास है। आज जिस तकनीकी युग में हम जी रहे हैं, उसने लोगों को एक-दूसरे से काफी करीब ला दिया है लेकिन साथ ही इसी तकनीक ने सुकून का वह समय छीन लिया है जो हम आपस में बांट सकें। आज हमने पूरी दुनिया को तो मुट्ठी में कैद कर लिया है, लेकिन खुद में इतने मशगूल हो गए हैं कि सारी दुनिया से कट से गए हैं।
दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है, जो वार्तमानिक परिवेश में जबकि मानवीय संवेदनाओं एवं आपसी रिश्तों की जमीं सूखती जा रही है, एक-दूसरे से जुड़े रहकर जीवन को खुशहाल बनाने और दिल में जादुई संवेदनाओं को जगाने का सशक्त माध्यम है। क्षणिक और स्वार्थों पर टिकी मित्रता वास्तव में मित्रता नहीं, केवल एक पहचान मात्र होती है। ऐसे मित्र कभी-कभी बड़े खतरनाक भी हो जाते हैं। एक विचारक ने लिखा है- ‘‘पहले हम कहते थे, हे प्रभु! हमें दुश्मनों से बचाना, परन्तु अब कहना पड़ता है, हे परमात्मा, हमें दोस्तों से बचाना।’’
मित्रता दिवस दोस्ती को अभिशाप नहीं, वरदान बनाने का उपक्रम है। यह दिवस वैयक्तिक स्वार्थों को एक ओर रखकर औरों को सुख बांटने एवं दुःख बटोरने की मनोवृत्ति को विकसित करने का दुर्लभ अवसर प्रदत्त करता है। इस दिवस को मनाने का मूल यही है कि दोस्ती में विचार-भेद और मत-भेद भले ही हों, मगर मन-भेद नहीं होना चाहिए, क्योंकि विचार-भेद क्रांति लाता है जबकि मन-भेद विद्रोह। क्रांति निर्माण की दस्तक है, विद्रोह बरबादी का संकेत।
मित्रता का भाव हमारे आत्म-विकास का सुरक्षा कवच है। आचार्य श्री तुलसी ने इसके लिए सात सूत्रों का निर्देश किया- विश्वास, स्वार्थ-त्याग, अनासक्ति, सहिष्णुता, क्षमा, अभय, समन्वय। यह सप्तपदी साधना जीवन की सार्थकता एवं सफलता की पृष्ठभूमि है। दोस्ती का यह दिवस आमंत्रित कर रहा है अपनी ओर, बांहें फैलाए हुए, हमें बिना कुछ सोचे, ठिठके बगैर, भागकर दोस्ती की पगडंडी को पकड़ लेने के लिए। जीवन रंग-बिरंगा है, यह श्वेत है और श्याम भी। दोस्ती की यही सरगम कभी कानों में जीवन-राग बनकर घुलती है तो कहीं उठता है संशय का शोर। दोस्ती को मजबूत बनाता है हमारा संकल्प, हमारी जिजीविषा, हमारी संवेदना लेकिन उसके लिए चाहिए समर्पण एवं अपनत्व की गर्माहट। यह जीना सिखाता है, जीवन को रंग-बिरंगी शक्ल देता है। प्रेरणा देता है कि ऐसे जिओ कि खुद के पार चले जाओ। ऐसा कर सके तो हर अहसास, हर कदम और हर लम्हा खूबसूरत होगा और साथ-साथ सुन्दर हो जाएगी जिन्दगी।
हमें तन्हाई का कोई साथी चाहिए, खुशियों का कोई राजदार चाहिए और गलती पर प्यार से डांटने-फटकराने वाला चाहिए। यदि यह सब खूबी किसी एक व्यक्ति में मिले तो निःसन्देह ही वह आपका दोस्त होगा, मित्र होगा। वही दोस्त, जिसके रिश्ते में कोई स्वार्थ या छल-कपट नहीं, बल्कि आपके हित, आपके विकास, आपकी खुशियों के लिए जिसमें सदैव एक तड़प एवं आत्मीयता रहेगी।
वास्तव में मित्र उसे ही कहा जाता है, जिसके मन में स्नेह की रसधार हो, स्वार्थ की जगह परमार्थ की भावना हो, ऐसे मित्र साँसों की बाँसुरी में सिमटे होते हैं, ऐसे मित्र संसार में बहुत दुर्लभ हैं। श्रीकृष्ण और सुदामा की, विभीषण और श्री राम की दोस्ती इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं।
जोसेफ फोर्ट न्यूटन ने कहा है कि, “लोग इसलिए अकेले होते हैं क्योंकि वह मित्रता का पुल बनाने की बजाय दुश्मनी की दीवारें खड़ी कर लेते हैं।”
मित्रता प्रेम का नहीं, बल्कि करुणा का पर्याय होनी चाहिए, क्योंकि प्रेम में स्वार्थ है, राग-द्वेष के संस्कार हैं जबकि करुणा परमार्थ का पर्याय बनती है।

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