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जीवन अब बिखरा-बिखरा

राधा गोयल
नई दिल्ली
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प्रकृति से खिलवाड़…

जोशीमठ जो दरक गया है, बड़ी तबाही का खतरा है,
कितने लोग हो गए बेघर, जीवन अब बिखरा- बिखरा है।

आजीविका का नहीं है साधन, कैसे करें कमाई,
हाय मानव तेरे कारण बड़ी मुसीबत आई।

लाखों पेड़ काट डाले, सड़कों का जाल बिछाया,
बड़ी गाड़ियों ने सड़कों पर भारी जाम लगाया।

बड़ी कार में प्रकृति का सौंदर्य देखने आया,
धुआंधार धुएं ने पहाड़ों पर कोहराम मचाया।

पर्वत दबे भार से उनके, कैसा ताण्डव छाया,
पर्वत पर रहने वालों को मौत की नींद सुलाया।

पर्यटकों के लिए नित नए होटल बनते जाते,
अपने भार से पर्वत को वो और धँसाते जाते।

सड़क अगर चौड़ी न होती, इतना भार न पड़ता,
यात्री भी सीमित आते, और पर्वत नहीं दरकता।

केदारनाथ की विभीषिका से सीख नहीं ली हमने,
ऋषिगंगा की तबाही से भी कुछ नहीं सीखा हमने।

बादल फटना,सड़क दरकना और हिमस्खलन होना,
आपदाओं से सीख ले, वरना तुझे पड़ेगा रोना।

प्रकृति से खिलवाड़ रोक दे, वरना पछताएगा,
अब भी अगर नहीं जागा, तो प्रलयकाल आएगा॥