ऋचा गिरि
दिल्ली
***************************
दशहरा विशेष…
आज दशहरा है,
बहुधा ने अपने-अपने रावण को
छुपा रखा है
अपनी अलमारियों में,
ये आकर्षक अप्रकृत
फूल वाले वासों में भी छिपे पड़े होंगे
देखना,
कुछ ने तो तिजोरियों में रखा होगा
इसे संभाल कर…।
आज छुट्टी का दिन है,
तो रावण भी नहीं निकलेगा
उन अलमारियों से,
आकर्षक अप्रकृत फूल वाले वासों से
और तिजोरियों से…।
चलो इसी बहाने सभी राम तो बन जाएंगे,
चाहे एक दिन के लिए ही सही…।
या फिर संडे का इंतजार करना होगा,
वह भी अच्छा है
सप्ताह में एक दिन राम,
फिर मंडे से दशानन
बनना ही पड़ेगा
वो कहते हैं
सीधा पेड़ पहले काटता है…
या कहेंगे,
आज के दौर में दशानन की ही आवश्यकता है…।
यूँ तो ज़िंदगी ‘ऑल्ट-टैब’ में ही, सिमट कर रह जाएगी…।
मनु की संततियों!
कौन-सा दौर चल रहा है ?
क्या रावण जलाना महज बच्चों का खेल-सा हो गया है ?
‘जेन जेड’ और ‘जेन अल्फा’ को, परंपराओं
और पौराणिक कथाओं से रूबरू कराना होगा,
ताकि वे जानें अपने पूर्वज श्रीराम का जीवन-संघर्ष
उनकी ‘सद’ के पक्ष में प्रतिबद्धता,
न्याय की निष्ठा
अन्याय का प्रतिकार,
अपने मार्ग पर
उनके अडिग कदम,
यह पीढ़ी देखे,
इस पोस्ट-ट्रुथ युग में सत्यता, अखंडता,निष्ठा,
आत्मीयता,स्थिरता,धैर्य और पराक्रम सीखे।
यदि राम बनकर वनवास झेलना पड़े,
तो इन्हें वनवास के लिए तैयार करना होगा
तभी,
असत्य पर सत्य की जीत होगी…।
अधर्म पर धर्म की जीत होगी,
अन्याय पर न्याय की जीत होगी!!