कुल पृष्ठ दर्शन : 39

You are currently viewing जीवन और विधाता

जीवन और विधाता

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
*********************************************

रचा मुझको विधाता ने, यही सम्मान है मेरा।
बने दाता पिता-माता, यही अभिमान है मेरा॥

मिली शिक्षा गुरू से देवता वे हैं विधाओं के,
दिखी लीला मुझे प्रभु की गुरूजी की कलाओं से।
सजेगी जिन्दगी मेरी, रहेगा मान जब मेरा,
बनूॅं मै भक्त उनका भी, यही अभियान है मेरा॥
रचा मुझको विधाता ने…

सभी की मान्यता से मै, बिताऊॅं जिन्दगी अपनी,
सजाऊॅं सभ्यता जग की, निभाऊॅं बन्दगी अपनी।
कटे जीवन तसल्ली से, सजा के ज्ञान का डेरा,
हृदय स्वागत करें सबके, यही गुणगान है मेरा॥
रचा मुझको विधाता ने…

भरें हैं स्वार्थ से जीवन, करें फिर क्या विधाता भी,
उन्हीं के आसरे सब हैं, रहे इक दृष्टि दाता की।
जहाॅं विश्वास दाता का वहीं मिटता जगत फेरा,
लगूॅं भव पार जीवन में, यही अरमान है मेरा॥
रचा मुझको विधाता ने…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।