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तपती धरती

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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तपती धरती,जल रहा आसमान,
घटता जल,सब हैं हैरान।
लुप्त होती हरियाली,
नहीं दिखती प्रकृति की लाली।
नीम-पीपल की छाँव तले,
अब न कोई झूला झूले।
बाग-बगीचे में न कोई मिले,
पेड़-पौधों को सब भूले।
शीतल न होती अब सिंदूरी साँझ,
धरती हो रही अब बाँझ।
सूरज अब डराने लगा है,
मन अब घबराने लगा है।
जलती धरती की बुझाना है प्यास,
हरियाली को रखना है पास।
तो बन्द करो अब प्रकृति का दोहन,
मत करो धरती का शोषण।
पेड़ लगाओ हजार-हजार,
धरती करे यही पुकार।
सागर सरिता कल-कल गाये,
पंछी मधुर गान सुनाएं।
सुमन अपना सौरभ बिखराये,
गुन-गुन भौंरें गुनगुनाये।
धरा सुंदरी धानी चुनर लहराए,
आसमान भी देख मुस्काएll

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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