राधा गोयल
नई दिल्ली
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कहने को तो मनुष्य विकासशील हो रहा,
किन्तु वास्तव में वह, विनाशशील हो रहा
दूसरों की भूमि को नाहक हथियाने के लिए,
कोई यहाँ, कोई वहाँ, युद्ध में रत हो रहा
एक युद्ध अभी खत्म हो नहीं पाता है कि,
दूसरा युद्ध कहीं और छिड़ जाता है
दो-दो विश्व युद्धों से कुछ भी नहीं सीख पाया,
विस्तारवादी नीतियों में लिप्त विश्व हो गया।
युद्ध थोपने के लिए नए-नए बहाने,
विकासशील देश रोज-रोज सोचने लगे
वियतनाम-ईरान के साथ अमेरिका का
वर्षो॔ युद्ध चलता ही रहा,
रूस ने यूक्रेन से अकारण ही लड़ाई की
लाखों ही लोगों की जिंदगी तबाह की,
दो वर्ष से अधिक हुए, पर युद्ध न रुका
मौत से बदतर जिन्दगी हुई, सबका दम घुटा-घुटा,
दोनों तरफ कितने मरे, कुछ हिसाब ही नहीं
कितनी जिंदगानियों का ‘उजाला’ चला गया।
एक युद्ध छिड़ा हुआ, वो खतम भी न हुआ था,
कि अचानक एक युद्ध और छिड़ गया
हमास ने इज़राइल पर नाहक आक्रमण किया,
जमकर बमबारी की, सब तबाह हो गया
भूखे-प्यासे सोच रहे, हाय ये क्या हो गया,
क्रिया की प्रतिक्रिया तो होनी निश्चित ही थी
इजराइल ने भी हमास पर जमकर बमबारी की,
सब तबाह हो गया, सब बिखर-बिखर गया
कल तक आबाद था जो चमन, हाय बंजर हो गया।
लाखों लोगों की लाश बिछाकर जीत भी गए अगर,
आसरा भी उनको दिला दोगे गर, हो गए जो बेघर
उनके रिसते जख्मों को, तुम कभी भर न पाओगे,
जिंदगी की रोशनी, उनको दे न पाओगे
जिनके अपने मर गए हैं, क्या उनको लौटा पाओगे ?
जिनके ख्वाब मिटाए तुमने, क्या वे सजा पाओगे ?
जीवन में भर दिया अंधेरा, रोशनी दे पाओगे ?
सूने मन मंदिर में, पुनः उजाला भर पाओगे ?
जीवन यदि नहीं दे सकते, तो जीवन को क्यों लेते हो ?
शांति भंग करके दुनिया की, तुम आखिर क्या पा लेते हो ?
‘जियो और जीने दो’ की रीति यदि अपनाओगे,
तब ही सच्चे अर्थो में, तुम मानव कहलाओगे॥