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तुझको बैर क्यूँ…?

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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माना तू मेरी जान है
मेरे दिल का अरमान है,
पर माँ से तुझको बैर क्यूँ ?
माँ तो मेरा ईमान है।

मैं माँ के दिल का टुकड़ा हूँ
नहीं आसमान से टपका हूँ
बिन तेरे तो मैं जी लूंगा
कुछ ठंडी आहें भर लूंगा।

पर माँ ये सह ना पाएगी
वह जीते-जी मर जाएगी,
बेदर्दी, जा तू भूल मुझे
माँ के बिन मुझे न पाएगी।

तू छोड़ मुझे उससे पहले
मैं तुझको ही अब छोड़ रहा,
मेरी दुनिया माँ के पाँव तले
तू आज अभी ही मुझे भुला।

तेरे नखरे सह न पाऊँगा
माँ को न घर से निकालूंगा,
मैं भी उनका, घर भी उनका
मैं उनके बिन जी न पाऊँगा।

मैं अपना फर्ज निभाऊँगा,
तपस्या का फल चखाऊंगा।
माँ अंतिम क्षण तक सुखी रहे,
मैं दूध का कर्ज उतारूंगा॥