प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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आयी शरण में शिव जी मैं तो तुम्हारी।
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी॥
जीवन का सार तुममें करके समाहित,
अर्थी-कलश इच्छाओं का गंगाजल प्रवाहित।
आकर मिटा दो स्वामी भव दुविधा सारी,
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥
ढांपो मेरे सब अवगुण प्रभु जी अपनाओ,
नाम जपूं मन से तुम्हारा अब ना भरमाओ।
हूँ तो संसार बीच पर ना हूँ संसारी,
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥
किये जब से बन्द खुद पे दुनिया दरवाजे,
तैसे ही आकर मन में तुम हो विराजे।
मन मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा मूरत शिव न्यारी,
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥
जीवन की सब स्मृतियाँ घिस-घिस मिटाऊँ,
बन जाऊँ कोरा कागज नाम शिव लिखाऊँ।
बीते अब घरि-घरि पल छिन याद में तुम्हारी,
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥
जनमों की प्यासी हूँ मैं चरणों की आशा,
रख करके हाथ सिर पर दे दो दिलासा।
स्वीकार कर लो भगवन भक्ति हमारी,
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥
आयी शरण में शिव जी मैं तो तुम्हारी।
अब तो तुम्हारी सेवा प्राणों से प्यारी…॥