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तुम मेरे क्या हो…

कुमारी ऋतंभरा
मुजफ्फरपुर (बिहार)
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हाँ, तुम मेरे अपने हो,
हाँ, तुम ही मेरा प्रेम हो
हर सुबह की पहली किरण,
हर दिन की पहली शबनम हो।

मेरी सुबह की गुड मॉर्निंग तुम,
मेरे दिन की पहली बात हो
अखबार-सी आदत बनकर,
हर खबर के साथ हो।

वह प्रेम भी कोई प्रेम नहीं,
जो मांग कर ठहर जाए
जिससे प्रेम हो आत्मा से,
उसे प्रेम कहा नहीं जाए
बस निभाया जाए।

मेरी खैरियत तुम्हारी चाह,
बिन कहे कहा पूछ लेना,
बस यही तो है प्रेम की राह।

ना शिकायत, ना कोई शर्त,
न स्वार्थ का कोई शोर
सलामत रहना खुश रहना,
यही प्रेम का सच्चा अर्थ।

हाँ, तुम ही मेरे प्रेम हो,
और यही पर्याप्त है
प्रेम जब आखिरी हो जाए,
तो उसे शब्दों की जरूरत कहाँ रहती…॥