डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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आदिशक्ति माँ दुर्गा (नवरात्रि विशेष)…
मनमोहिनी मनभावनी सूरत,
अद्भुत इनके नयन निखार
बिखर रही छटा अलौकिक,
भैरवी का अनुपम है श्रृंगार।
लाल साड़ी, लाल ही चुनरी,
लाल बिंदी है इनके लिलार
पाँव पैंजनिया अद्भुत शोभे,
रूनझुन-रूनझुन हैं झंकार।
भयहारिणि, सिंहवाहिनी माता,
तन काला, काले कुंचित बाल
लप-लप इनकी जिह्वा करती,
हाथ खप्पर भरे रूधिर लाल।
दाँय भुजा शंख चक्र शोभित,
बाम भुजा पुष्प, त्रिशूल तलवार
चौंसठ योगिनी साथ है चलती,
महिमा इनकी है अपरंपार।
कैसे कहूँ अपनी दु:ख विपत्ति,
सुना है माँ भक्तों की सुनती
तेरे बिना छाया है अन्धेरा
शरणागत हूँ, करुँ मैं विनती।
कृष्ण, कभी तू कृष्णा बनती,
ब्रह्मस्वरूपा, अनेक अवतार।
त्रिदेवों की तू ही है जननी,
तुझमें छुपा है सृष्टि का सार॥