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थी असली वीरांगना

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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थी वो असली वीरांगना,नाम था जिसका लक्ष्मीबाई,
शत-शत नमन आज भी आपको हे रानी लक्ष्मीबाई।

चीरा था अपने शौर्य से जिसने दुश्मनों का कलेजा,नाम था लक्ष्मीबाई,
बाबा की प्यारी मन्नू ने था घर-प्रांत सब सहेजा,नाम था लक्ष्मीबाई।

बनी झांसी की कुलवधू,देख वक्त थाम ली तलवार, नाम था लक्ष्मीबाई,
वन्दन है आपको,होती आज भी जय-जयकार,नाम था लक्ष्मीबाई।

रहेगा ऋणी देश आपका,कभी भूलेंगे नहीं बलिदान, नाम था लक्ष्मीबाई,
कटार-भाले से बनी,झांसी की रानी की पहचान,नाम था लक्ष्मीबाई।

थी वीर राज दुलारी लक्ष्मी,डटी रही मैदान में,नाम था लक्ष्मीबाई,
न डरी,न झुकी-न सहमी कभी किसी ऐलान में,नाम था लक्ष्मीबाई।

किया हरदम बड़ा संघर्ष,दूर रही हर सुख-सुविधा से,नाम था लक्ष्मीबाई,
थी भारत माता की सच्ची बेटी,नहीं डरी किसी दुविधा से,नाम था लक्ष्मीबाई।

लिखा वीरता का नया इतिहास,सादर नमन हे रानी, नाम था लक्ष्मीबाई,
शूरता-त्याग-तपस्या का,पर्याय बनी रानी,नाम था लक्ष्मीबाई।

नाम से था डरता दुश्मन,ऐसा लड़ी हर पल मर्दानी, नाम था लक्ष्मीबाई,
जान दे दी,पर न दिया राज्य,थी रानी स्वाभिमानी, नाम था लक्ष्मीबाई।

कहलाई रानी झांसी की,किया शत्रु पर खूब प्रहार, नाम था लक्ष्मीबाई,
सबको हरपल खूब खदेड़ा,मानी नहीं कभी हार,नाम था लक्ष्मीबाई।

ले तलवार उतरी युद्ध में,थी पीठ पर संतान,नाम था लक्ष्मीबाई,
बचाने को झांसी,युद्ध क्षेत्र में दिया बलिदान,नाम था लक्ष्मीबाई॥

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