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दमन

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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तब मैं बहुत छोटी थी…
मैंने अपनी बड़ी बहिन को देखा था,
शादी के बाद
वह गुमसुम, चुपचुप-सी रहती,
रातभर करवटें बदलती रहती
मगर सुबह…
सबसे खिलखिला कर मिलती,
खूब हँस-हँस कर बात थी करती।

हमेशा यही जतलाने का प्रयत्न करती,
मैं ससुराल में बहुत खुश हूँ
पर जब भी माँ के करीब बैठती,
माँ सहला कर उसकी पीठ पर हाथ फेरती
वह सुबक-सुबक रो पड़ती,
अपनी चोट के निशान दिखाती।

माँ उसको समझाती-
“ऐसे ही घर नहीं बसता
बहुत कुछ सहना है पड़ता,
सब ठीक हो जाएगा।”

वह ज्यादा सह ना सकी,
एक दिन दुनिया से चल बसी
सब चुप रहे,
किसी ने कुछ कहा, न सुना
माँ अब चुपचाप में आँसू बहाती है,
सब भाग्य का दोष बताती है।

आज सोचती हूँ, दोष किसका था ?
भाग्य का, पूर्व जन्म का, समाज का,
या
माँ-बाप का, जिसने अपने जिस्म के,
टुकड़े की बात अनसुनी की।
या
मेरी बहिन का, जिसने कभी
जुर्म के खिलाफ आवाज न उठाई।
दोषी कौन…?

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।