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दर्द

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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बीत गया होली का मौसम पर ख़ुमार बाकी है अब भी,
रंग दिखाती गर्म हवाएं पर बहार बाकी है अब भी।

याद अभी बाकी है मन में बीत गए जो प्यारे लम्हे,
रंग पड़े फीके होली के पर श्रृंगार बाकी है अब भी।

साज सभी बज रहे मधुर रागिनियाँ गूँज रही मंडल में,
प्रमुदित हृदय करें सारे ही पर सितार बाकी है अब भी।

आतुर ये मन है प्रीतम की बाँहों में जाकर खो जाऊँ,
सोच निहारे चांद चकोरा पी पुकार बाकी है अब भी।

कौन यहां सुनता इस दिल की,प्यार-मोहब्बत से दिल टूटा,
दर्द सहा लब सी कर रक्खे पर पुकार बाकी है अब भी।

दूर भले हों साजन मुझसे लेकिन याद सताती उनकी,
याद करें या नहीं करें वो पर दुलार बाकी है अब भी।

ले गई होली साथ बुराई जीत भलाई की शाश्वत है,
कष्ट हरो मम दीन दयाला क्या गुहार बाकी है अब भी ?

हार गया जीवन की बाजी उकताया मन इस दुनिया से,
भूल चुका सारे दर ‘शंकर’ श्याम द्वार बाकी है अब भी॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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