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हरियाणा : दलों को चिंतन तो करना पड़ेगा, वरना…

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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हाल ही में २ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम में हरियाणा में भाजपा जीती, तो जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के गठबंधन वाली नेशनल कांफ्रेंस जीती है। यह परिणाम झारखंड और महाराष्ट्र के आगामी विस चुनाव के लिए इन दोनों प्रमुख दल सहित अन्य के लिए भी कड़ी चुनौती है। वजह यह है कि हरियाणा में माहौल अनुसार सत्तासीन भाजपा का विरोध होने के बाद भी भाजपा सतत तीसरी बार कुर्सी की विजेता बनी है। यहाँ की कुल ९० सीटों में से भाजपा ने ४८ जीती है, तो कांग्रेस को मात्र ३७ मिली। ऊपर से आम आदमी पार्टी के बड़बोले प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के लाख दावों को पहलवानी मतदाताओं ने जमकर पटखनी दी, यानी इनकी जीत का यहाँ ख़ाता ही नहीं खुल सका। इसके पीछे जनता की सोच, कांग्रेस से गठबंधन विवाद सहित हरियाणा के स्थानीय दल के साथ हाथ भी नहीं मिलाना आदि प्रमुख कारण हैं। एक प्रमुख कारण यह भी हो सकता है कि दिल्ली और पंजाब में इनका सत्ता में होकर कामकाज का तरीका मतलब विकास भी आमजन की नजर में रखा जाना है। चुनाव आयोग द्वारा जारी अंतिम परिणाम अनुसार हरियाणा में आईएनएलडी को मात्र २ व आईएनडी को केवल ३ स्थानों पर जीत हासिल होना भी बड़ा गहरा संदेश है, क्योंकि आईएनएलडी राज्य का स्थानीय दल है, तब भी जनता ने इस बार भी इन्हें नकारा है। इसके पीछे के कारणों को सभी प्रमुख दलों को अपने अच्छे-बुरे परिणाम अनुसार समझकर उस पर जमीनी चिंतन और काम करना होगा, तभी परिणाम बदल सकते हैं। यदि यह चिंतन और काम दोनों ही समय रहते नहीं किया गया, तो तय है कि ५ साल बात मतदाता फिर नया सबक देना नहीं भूलेगा। हरियाणा में भाजपा के इस शानदार प्रदर्शन के पीछे अनगिनत कार्यकर्ताओं का जमीनी प्रयास, मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का करीब १ साल का बढ़िया कार्यकाल और राष्ट्रीय नेतृत्व की मेहनत सहित प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री की रैली तथा सभा भी है। कहना गलत नहीं होगा कि इस राज्य में भाजपा ने निरंतर तीसरी बार सत्ता में आकर केंद्र सरकार की भाँति बड़ा इतिहास रचा है। इसके उलट कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी, मतदाताओं का मन नहीं समझना, घोषणा-पत्र में भाजपा की नकल करना, दाँव असफल होना और जातिवाद पर असमंजस होना पराजय के बड़े कारण दिखाई देते हैं।

दिल्ली से सटा राज्य होने पर भी जाट मतदाताओं का दिमाग देखिए कि ‘आआपा’ की झोली में कुछ नहीं डाला। इसका भी लाभ भाजपा को मिला है, जबकि कांग्रेस के नेता एकसाथ आने की बजाए लड़ते रहे, इसलिए हार मिली। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड़्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला के बीच जो अ-समन्वय सबने देखा, उसे कार्यकर्ता और मतदाता ने भी बड़ी गंभीरता से लिया। इसके बाद भाजपा को पीछे करने के लिए ‘जातिवाद’ को आगे करना भी कांग्रेस का आत्मघाती कदम रहा, जबकि इस मुद्दे पर हर दल को बचना चाहिए, क्योंकि समाज को बाँट कर राजनीति और सेवा नहीं की जानी चाहिए। ऐसे अनेक कारण और मुद्दे रहे, जो कांग्रेस ने बिना भविष्य समझे चुनावी मैदान में उतारे और हरियाणा में सतत तीसरी बार ‘कमल’ खिल गया।
अब बात देश के स्वर्ग यानी कश्मीर की तो यहाँ भी कांग्रेस को घाटा और भाजपा को फायदा हुआ है। फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांन्फ्रेंस से मिलकर चुनाव लड़ने पर भी इस स्वर्ग की ९० सीटों में से कांग्रेस को बस ६ ही मिली, जबकि भाजपा की झोली में २९ सीटें आई। नेशनल कांन्फ्रेंस ने इस बार ४२ सीट जीती है, जो बड़ा उलटफेर है। इसकी एक वजह महबूबा मुफ़्ती के दल पीडीपी से जनता की नाराजी भी है। इसलिए जनता ने इनको केवल ३ सीट और करारी पराजय देकर इशारा समझा दिया है।
ऐसे में कश्मीर की सत्ता भाजपा को नहीं मिलना कांग्रेस का ख़ुशी मनाने का कारण हो सकता है, पर यह सच्चाई नहीं है। कांग्रेस को इस बात को गले उतारना यानी मानना पड़ेगा कि यहाँ धारा-३७० के मुद्दे पर किए गए काम और विकास पर जनता ने भाजपा को पसंद किया है, जबकि पीडीपी के प्रति निकला गुस्सा स्थानीय नेशनल कांन्फ्रेंस के लिए फायदेकारी बना है। इसलिए ही बरसों बाद नेशनल कांन्फ्रेंस ने सत्ता में वापसी की है। मतलब कांग्रेस को यहाँ गठबंधन से क़ोई लाभ नहीं हुआ है। अगर भाजपा को पूरी तरह नकारा या स्वीकारा जाता तो घाटी में कुछ और दृश्य होता। महबूबा की पीडीपी से जनता का मोह भंग हुआ, तभी तो धारा-३७० और संविधान बदलने पर कांग्रेस द्वारा जोरदार प्रचार के बाद भी भाजपा को यहाँ २५ फीसदी मत मिले हैं, जबकि कांग्रेस को ११ फीसदी ही मिले हैं।
कुल मिलाकर हरियाणा एवं कश्मीर के बाद सभी दलों के लिए अब महाराष्ट्र और झारखंड की राहें सरल नहीं रही हैं, क्योंकि हार से तकलीफ हमेशा बढ़ती है और सही मुद्दों पर भी फिर से चिंतन करना पड़ता है। भाजपा के लिए यह चिंतन फिर भी सकारात्मक है, क्योंकि संगठन फिर भी मजबूत है, लेकिन कांग्रेस की दशा अलग है। अब महाराष्ट्र व दिल्ली के चुनावी जोश पर इस हार से जो तनाव और चिंता उपजी है, उसे संगठनिक स्तर पर कांग्रेस को बेहद गंभीरता से लेना होगा, तभी ‘हाथ’ का कोई कमाल सम्भव है।

इधर, भाजपा को भी इस जीत-हार से नसीहत व सहयोग लेकर जन विकास के पथ पर और तीव्र गति से चलना होगा, तभी मतदाताओं के मन में ‘कमल’ खिलता रहेगा।