बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…
दहक रही है धरती,
गगन उगले आग
ओ मानव कब तक सोएगा,
अब तो स्वप्नों से जाग।
वन, जंगल, पेड़ कटे,
पशु-पक्षी गए भाग
अपना-अपना राग अलापे
स्वयं से ये कैसा अनुराग।
जल संकट लेने लगा,
धीमे-धीमे विस्तार
रे मानव! अब चेत जा,
होने को है तेरा संहार।
तापमान निरंतर बढे,
सब जलकर हो गया राख़
कर ले प्रकृति का संरक्षण,
क्यों बंद किए है आँख।
खडे-खडे वाहन फूँके,
सूर्य उगलता आग
खेत-खलिहान नष्ट हुए,
कहाँ उगे अब साग।
रे मानव अब चेत जा,
घर-घर लगा अब वृक्ष।
जल का कर ले संरक्षण,
होने को है सब नष्ट॥