उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?…
सब रिश्ते यहाँ अनमोल होते हैं दिलों पर यह राज करते हैं,
कभी रूठना कभी मनाना, रिश्ते को बांधकर रखते हैं…।
रिश्ता परिवार का एक अनमोल उपहार होता है,
रिश्ता न बिखरे-न टूटे, ऐसा हर पल प्रयास होता है…।
दिखावे के कारण आज रिश्ता सरेआम बदनाम है,
मर्यादा माता-पिता से गायब संस्कार की कमी दिखाता है…।
फूहड़ता विदयमान हर इंसान में यह झलक दिखता है,
मानवता मर गई दिलों में रिश्ते से हर शख्स भागता है…।
खो-सी गई हर रिश्ते की ज़िंदगी दूभर-सी हो गई है,
भटक रहा वह हर रिश्ता, प्यार- स्नेह सब खो गया है…।
कहाॅं खो गया वह प्रेम हमारा, जो रिश्ते में दिखता था,
मर्यादा अब शर्मसार सरेआम हो रही रिश्ता भूलता है…।
‘उर’ से हर रिश्ता निभाना पहले दिलों की चाहत थी,
दिखावे के चक्कर, अहम की भावना से रिश्ते टूटते हैं…।
अलग रहने की तमन्ना, संयुक्त परिवार बिखरता है,
यहीं से सभ्यता-संस्कृति-संस्कार का फिर अंत होता है…।
मैंने भी रिश्तों की हर डोरी को जीवन में चाहा था,
रिश्तों से जब विश्वास उठ गया धोखा ही मिला था…।
अपनों के लिए सब अच्छा सोचना अपनत्व भावना थी,
मन के जो अच्छे तार भावना थे दरार बनकर टूटना था…॥