डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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जिंदगी की कश्मकश में पाया नजारा हमने।
खुशियों को खत्म करके पाया ख़सारा हमने।
अपने दुश्मन से किया जबसे किनारा हमने,
दिल-ए-नादान को किश्तों में है मारा हमने।
हाथ जब छोड़ के तनहा किया उसने मुझको,
बेबसी में फकत बस रब को पुकारा हमने।
ज़िंदगी कर दी दोज़ख किसी रहज़न ने मेरी,
ज़िंदगी को अब बड़ी मेहनत से सँवारा हमने।
तेरी यादों को खुरच करके अपने सीने से,
बड़ी काविश से अपने खुद को सुधारा हमने।
‘शाहीन’ पे जो बोझ था, वो बेवफा का था,
कंधों से उसका बोझ उतारा हमने॥