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दिल भी रोता है…

सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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दिल भी रोता,
दर्द सारे सहता है
कसूर बस आँखों से
होता है।
बेवकूफों की तरह बह जाती,
दिल दर्द को सहते हुए
बिन आँसू बहते हुए,
शोर! कर कहता-
धक-धक में हूँ जिन्दादिल
नहीं!
कभी कहूँगा अपनी व्यथा,
सह लूँगा हर दर्द बेहद बेवजह।
क्योंकि,
कतरा एक भी बाहर निकाल दिया,
ये जहान छूट जाएगा…
बेवजह!!