सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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नहीं जानता कोई भी,
वो दुनिया कैसी होगी ??
बेखौफ जा रहे मर-मर के,
वो दुनिया कैसी होगी ??
क्या दुःख-दर्द वहाँ के कम होंगे,
क्या बिछड़े अपने मिलते होंगे ?
जब करती तुलना इस दुनिया से,
क्या सुख के बादल उड़ते होंगे ?
कई जा चुके, कई जा रहे,
इस दुनिया से सब भाग रहे
बेखौफ जा रहे मर-मर के,
वो दुनिया कैसी होगी?
क्या माँ की कमी पूरी होगी,
क्या सर पर बाप-सी छत होगी ?
क्या बहन के निर्मल प्रेम तले,
भाई की महकती दुनिया होगी ?
दूजी दुनिया में ख्वाब सजाने,
सबको एक दिन जाना है,
बेखौफ जा रहे मर-मर के,
जाने दुनिया कैसी होगी ?
क्या छल और प्रपंच वहाँ भी होगा,
क्या अपनों से मानव जलता होगा ?
क्या दिल सबके छोटे होंगे,
क्या प्यार वहाँ बसता होगा ?
यूँ जा रहे हैं जरूर वहाँ,
इससे कोई नेक जहां होगा,
बेखौफ जा रहे मर-मर के,
वो जहां बहुत सुंदर होगा॥