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देश की दिशा और भविष्य

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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‘आज हम जो भी करेंगे, उससे देश की दिशा और भविष्य तय होगा’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए इस विचार के संबंध में एक विचार कुछ इस तरह से है कि सत्य वचन, भूत वर्तमान का बीता हुआ अंश होता है, भविष्य वर्तमान का आने वाला अंश होता है। यह ज्ञान आज समस्त जातियों को है, लेकिन कौन परवाह करता है ? यह प्रश्न युगों से खूँटे से ही बधा पड़ा है। कोई बता दे कि मानवतावादी सीमा कहाँ तक निश्चित की गईं हैं, तो सामान्य जन कल्याण-चिंतन कम हो सके। सुख चैन से रोजी-रोटी कमा सकें, सुकून से गुज़र बरस कर सकें। दार्शनिक विचार व धार्मिक आस्था के बीच कुलबुलाता राजनीति का पर्यावरण बहुत से नश्तर चुभोता है। जब यह ज्ञात होता है कि जनता से लेकर राजनेता तक सबके-सब २ नाव पर अपना एक-एक पैर रख नाव खै रहे हैं। समस्याएँ लहरों-
सी उफान मार-मार कर ज्वार-भाटा बन जाती हैं। कुछ पल में चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है और फिर से वही राग वहीं से आरंभ हो जाता है, जहाँ से वह पहले चला था। स्थाई समाधान खोजने तक प्रयास भी नहीं किया जाता। सब तथ्य आवश्कता पड़ने पर किए गए रामायण की प्रश्नावली के उत्तर की भाँति अस्थाई से उभरते व लुप्त होते रहते हैं।
देश का भविष्य चरमराया हुआ पहले से ही था। यथा ग़द्दारों की ग़द्दारी बताता इतिहास, युद्धों व महायुद्धों में लड़ता इतिहास, जाति-सम्प्रदायों में बँटा समाज और उस पर अति संघर्षों से लिप्यन्तर कर बना ‘धर्म निरपेक्ष’ राष्ट्र। इतिहास के पन्नों पर फैली दूर-दूर तक भारत की सीमाएँ, रह-रहकर टीस दें जाती हैं- ‘कहाँ थे और आज कहाँ आ गए।’ उस पर नजरअंदाजी का आलम यह कि ‘मानवतावादी’ औषधि नित् एक चम्मच सुबह ख़ाली पेट, दोपहर भोजन उपरांत एक चम्मच, शाम को चाय के साथ या पहले एक चम्मच और रात्रि में निद्रा से पहले एक चम्मच अवश्य लें, क्योंकि चैन की नींद के लिए यह ग्रहण करना अति आवश्यक है। देश की नंपुसकता को बलिष्ठ करने का यही एक मात्र औषधि स्त्रोत है जो कहता है बचना है तो सिर कड़ाई में, टाँगे लड़ाई में सदैव रखें।

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