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दौर ही है

मयंक वर्मा ‘निमिशाम्’ 
गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)

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क्यों परेशान हो,ये गहरे बादल छँटने दो,
शिकन हटाओ,माथे का पसीना हटने दो
क्यों जलना तंज़ और तानों की तपिश में,
इनकी अगन को ज़रा घटने दो।

ये दौर है ज़िंदगी का,जैसा भी मगर दौर ही है,
इसके बाद जीने का मज़ा कुछ और ही है…॥

दिल के उफानों को थमने दो,
खयालों के सैलाबों को जमने दो
दिन-महीनों की गिनती को छोड़ो,
इन लम्हों को गुजरने दो।

देखा है करीब से ये दौर,अच्छा-बुरा पर दौर ही है,
इसके बाद जीने का मज़ा कुछ और ही है…॥

जायज़ है सब सवाल तुम्हारे,
क्यों बंदिशों में कोई ज़िंदगी गुज़ारे
क्यों अपनी मन मर्ज़ी नहीं कर सकते,
क्यों ढोना है उन्हें जो होने थे सहारे।

आसान नहीं फैसलों का दौर,मुश्किल है डगर मगर दौर ही है,
इसके बाद जीने का मज़ा कुछ और ही है…॥

संभालो कदम,इन शोलों को राख में बदलने दो,
रस्मों-रिवाजों की बर्फ़ को पिघलने दो
ठहरो साँस लो,वक्त की धारा बहने दो,
जैसी चलती है दुनियादारी,वैसे ही चलने दो।

पहले भी कई बार गुज़रा है दौर,ये भी एक दौर ही है,
इसके बाद जीने का मज़ा कुछ और ही है…॥

परिचय-मयंक वर्मा का वर्तमान निवास नई दिल्ली स्थित वायुसेना बाद (तुगलकाबाद)एवं स्थाई पता मुरादनगर,(ज़िला-गाजियाबाद,उत्तर प्रदेश)है। उपनाम ‘निमिशाम्’ है। १० दिसम्बर १९७९ को मेरठ में आपका जन्म हुआ है। हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा जानने वाले श्री वर्मा ने बी. टेक. की शिक्षा प्राप्त की है। नई दिल्ली प्रदेश के मयंक वर्मा का कार्यक्षेत्र-नौकरी(सरकारी) है। इनकी लेखन विधा-कविता है। लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों की अभिव्यक्ति है। पसंदीदा हिंदी लेखक व प्रेरणापुंज डॉ. पूजा अलापुरिया(महाराष्ट्र)हैं।

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