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धरती माँ…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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आकाश जब रोता है
तब बादल बरसते हैं,
धरती का रोना कभी
कोई नहीं समझते हैं।

भूगर्भ कोख में लावा
सदा प्रवाहित होता है,
पर्यावरण असुंतलन
ही कदाचित होता है।

भू-स्खलन व हिमपात
प्रकृति की आपदा है,
संसाधन कीमत पर
मानव की विपदा है।

मैदानी भू-भाग में ही
प्रचंड गर्मी बरसती है,
बर्फीले पहाड़ों पर ही
सर्द हवा मचलती है।

शायद माँ जैसी होती
ये सदियों से धरती है,
होंठों पे मुस्कान लिए
उपकार ही करती है।

ये धरती माँ की पीड़ा
कोई जान नहीं पाया,
सकल विश्व के बोझ
तले खुद से अपनाया।

धरती माँ के अश्रुपूर्ण
रहस्य बात निराली है।
खुद दु:ख सहकर यह
जगत में खुशहाली है॥

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