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धारें सीता-राम जी के चरणों का ध्यान

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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अयोध्या में रामलला के विराजमान होते ही कलयुग में हर उस भाग्यशाली सनातनी को खुशियों के क्षण मिल गए हैं, जिसकी प्रतीक्षा में ५ सहस्त्र वर्षों से अधिक का समय लग गया। राम को भव्य मंदिर में देखने के लिए कितने संघर्ष और बलिदान हुए। हम अति भाग्यवान हैं कि, राम चरणों की रज बिना किसी संघर्ष के सहर्षता से अपने मस्तक पर लगा पाएंगे। राम चरणों का आसरा जिसने भी लिया है, वह जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा है।

“सीतापति पद नित बसत एते मंगलदायक।
चरणचिन्ह रघुबीर के संतन सदा सहायक॥”

यूँ तो राम के चरणों की महिमा का ज्ञान हमें गोस्वामी तुलसीदास की कृति ‘रामचरित मानस’ से मिलता है, जिसमें उन्होंने ५ प्रमुख चिन्ह-उर्ध्व रेखा, अंकुश, ध्वज, कमल व वज्र का वर्णन किया है, पर विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि, राम जी के दोनों दक्षिण व वाम चरणों में कुल ४८ चिन्ह अंकित हैं, साथ ही राम जी के जो चरण चिन्ह हैं, वही सीतामाता के चरणों पर भी हैं। अंतर केवल इतना है कि, राम जी के चरणों पर जो चिन्ह दक्षिण पग पर है, वह सीता माता के वाम पग पर और राम जी के जो वाम पग पर है, वह माता सीता के दक्षिण पग पर सुशोभित हैं।
सीता और राम भगवान के न केवल पूरे के पूरे ३६ गुण आपस में मिलते हैं, बल्कि पूरे के पूरे शुभ पदचिन्ह भी एक समान ही हैं। दोनों ने संसार को जो मर्यादा और आदर्श सिखाए, उनका अनुसरण जीवन में समस्त सुखों की प्राप्ति करवाते हैं। श्री राम भ्राता भरत जी तो राम जी के रामपद हेतु कहते हैं-
“अरथ न, धरम न, काम रूचि गति न चरऊ निरबान।
जनम-जनम रति रामपद, यह बरदानु न आन॥”

राम जी और सीता जी के चरण चिन्ह उज्जैन के महाकाल मंदिर प्रांगण के प्रवेश द्वार की दीवार पर भी शोभायमान हैं, जिनके दर्शन करकर भक्त मंदिर में जाते हैं। ऐसा क्या और वे कौन से चिन्ह हैं, जिनके दर्शन करने से संसार के सकल सुख, वैभव, यश, कीर्ति, सौभाग्य, धन, धान्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
“सीताराम चरण रति मोरे,
अनुदिन बढ़ऊ अनुग्रह तोरे।
जेहि विधि नाथ होइ हित मोरा,
करहू सो बेगि दास मैं तोरा॥”

राम-सीता जी के चरणों में जो चिन्ह हैं, उनका नाम और दर्शन फल जानते हैं-
प्रथम उर्ध्व रेखा-दर्शन, ध्यान से उपासक को महायोग और भवसिंधु से पार होने में सहायता मिलती है। स्वस्तिक-सदा मंगलकारी, कल्याणकारी है। अष्टकोण-अष्टसिद्धियाँ प्रदाता है। श्री लक्ष्मी जी-अंकन विजय प्रदाता है। मूसल-धूम्र, शत्रु
नाशक है। सर्प-भक्ति, शक्ति, शांति दायक है। शर बाण-शत्रु नष्टकर्ता तो अम्बर-भयनाश का सूचक है। कमल-का अंकन मन प्रसन्नता, यशवृद्धि का सूचक है। रथ-चार घोड़ों से आवृत्त पराक्रम उपलब्धि है। वज्र-पाप का क्षयकारक है। यव-सिद्धि, शिक्षा, सुमति, सुगति, संपति, निवास स्थलदायक है। कल्पवृक्ष-सारे मनोरथ सिद्ध करता है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष भी दर्शाता है। अंकुश-भव की मलिनता का नाश करता व मन चंचलता का हरण करता है। ध्वजा-विजय, कीर्ति की प्राप्ति की द्योतक है। मुकुट-दिव्यता, वैभव दायक है। चक्र-शत्रुनाश, सिंहासन-विजय सम्मान, यमदंड, निर्भयता व चामर-निर्मलता, विकार हरण व चंद्रकिरणों सम जीवन को प्रकाशवान करती है। छत्र-भौतिक, दैविक, दैहिक तापों से विमुक्ति और दयाभाव बढ़ाता है। नर-भक्ति, शांति, सत्व गुणों की प्राप्ति है। जयमाला-श्रंगार, उत्सव, प्रीति की बढ़ोतरी होती है। यह २४ पद चिन्ह राम जी के बाएँ और सीता जी के दाएँ चरण में सुशोभित हैं।
“जनकसुता जग जननि जानकी,
अतिसय प्रिय करूनानिधान की।
ताके जुग पद कमल मनवाऊँ,
जासु कृपा निरमल मति पावऊँ॥”

अब जानते हैं कि, कौन से चिन्ह राम जी के दाएँ और सीता जी के बाएँ चरण पर हैं। उसमें सरयू-भक्ति की प्राप्ति, कलिमूल का नाश दर्शाया गया है। गोपट-भगवत भक्ति, मुक्ति, पृथ्वी, मन में क्षमाभाव, कलश-भक्ति संग जीवन मुक्तता व अमरता है। पताका-काल का भय नष्ट और जय दर्शाता है। जम्बू फल-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति, अर्ध चंद्र-दंभ, कपट, मायाजाल से छुटकारा तथा अनहद, अनहिद नाद का कारक है। षट्कोण-षट्विकार काम, लोभ, मोह, माया, मद, मत्सर को विनष्ट कर शम, दम, उपरति, तितिक्षा, आस्था, श्रद्धा, समाधान देता है। त्रिकोण-योग, गदा चिन्ह दर्शन से दुष्टदलन, जीवात्मा-चिन्ह से ध्यान शुद्धता बढ़ती है और जीवन प्रकाशमय बनता है।
चरण चिन्हों में बिन्दु-संकेत है। पाप शाप से मुक्ति की, शक्ति दर्शन से शोभा संपत्ति की अभिवृद्धि, सुधाकुंड-अमरत्व प्राप्ति, त्रिवली-भक्ति रस्वादन, मीन-प्रभु प्रेम की प्राप्ति, पूर्ण चंद्रमा-अंकन से मानसिक शांति, सरलता मिलती है। वीणा-निपुर्णता, भगवान यशोगान, सफलता दिलवाता है। वंशी-इसके ध्यान से मधुरता, मन मोहिता, सफलता की प्राप्ति संभव है। धनुष-मृत्युभय निवारण, रिपुदमन कर्ता है। वहीं तूणीर-ईश्वर से सख्य भाव, सप्तभूमि के ज्ञान का वृद्धिकारक है। हंस-सुखद ध्यान, विवेक, बुद्धि को बढ़ाता है, वहीं चंद्रिका-यश कीर्ति बढ़ाने में सहायक है।

इस तरह श्री राम-सीता जी के पवित्र चरण चिन्हों के ध्यान मात्र से ही समस्ति की प्राप्ति संभव हो सकती है। यह अक्षय नवनिधि, अष्ट सिद्धि, कलाएं, कौशल सब- कुछ संभव बना सकता है। इनके दर्शन और ध्यान का जिसने भी सहारा लिया है, उसका इहलोक व परलोक सुंदर-सुखद बना है। आखिर हो भी क्यों नहीं, प्रभु श्री राम जी पालक विष्णु के सातवें अवतार पूर्ण परमात्मा पुरुषोत्तम हैं, तो सीता जी पराम्बा भगवती लक्ष्मी स्वरूपा। सीताराम जी के चरणों का ध्यान करते हुए सभी को राम उत्सव की अनंतकोटी शुभकामनाएं।