प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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सिहर उठता हूँ नारी-उत्पीड़न देखकर,
दहल उठता हूँ नारी प्रति शोषण देखकर
कहीं दहेज है, कहीं घरेलू हिंसा है
कहीं बलात्कार है,
धुँआ-धुँआ-सी नारी ज़िन्दगी।
कहीं जघन्यता के समाचार हैं,
कहीं छेड़खानी से भरे अख़बार हैं
सिहर उठता हूँ निर्भया के दर्द को लेखकर
सिहर उठता हूँ नारी-दुर्दशा को देखकर,
कैसा आलम है, कैसा मौसम है
चारों ओर है बस दरिंदगी।
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी…
कोलकाता अस्पताल की भयावहता,
हृदयविदारक हालात
चीखती-चिल्लाती एक नारी
तंत्र के मुँह पर तमाचा
व्यवस्था की हक़ीक़त का ख़ुलासा,
भारी शोर-शराबा, आंदोलन
हाथ की आई शून्य।
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी…
कहते हैं देवी, पर वह पीड़ित है,
पूजते हैं हम, पर वह शोषित है।
उसकी काया बनी भोग का सामान है,
गिरता जा रहा है, सम्मान है।
बढ़ती जा रही है देखो ज़िन्दगी,
धुआँ-धुआँ-सी नारी ज़िन्दगी…॥
परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।