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नदी:संकल्प लो, जीवन बचाओ

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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‘विश्व नदी दिवस'(२८ सितम्बर) विशेष…

बहती धारा का ये गीत है प्यारा,
नदी ही जीवन का आधार हमारा।

इसकी लहरों में कल-कल सुर है,
धरती का पूरा अस्तित्व उधर है।

आज प्रदूषण से घिरी नदी है,
प्यास से तड़पती खड़ी नदी है।

हमने ही तो दीं चोट हजार,
अब बनें इसके रखवाले बार-बार।

संकल्प करें-इसे न रोकें, न तोड़ें,
इसके किनारे कचरा न छोड़ें।

हर बूँद में बसी है एक उम्मीद,
हर लहर में जीवन का है गीत।

पेड़ लगाएँ, स्वच्छ रखें तट,
यही है सच्चा मानव व्रत।

नदी नहीं, तो खेत बंजर होंगे,
बिना जल जीवन के स्वर मौन होंगे।

आओ मिलकर प्रण ये करें,
नदी को फिर से हरा-भरा करें।

नदी बचेगी तो संस्कृति बचेगी,
नदी बचेगी तो धरती सजेगी।

नदी बचेगी तो जीवन बचेगा,
हर घर में हरपल उजियारा बहेगा।

इसे प्रदूषित नहीं करें हम,
अपना दायित्व निभाएं हम।

आओ, नदियों को पूरा सम्मान दें,
जीवन का एक सच्चा संकल्प लें॥