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नव ज्योति कलश

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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ब्रह्माड तिमिर हरने,
नव ज्योति कलश छलके
जैसे बनी सुहागन,
सिंदूर माथ दमके।

है गूँज कलरवों की,
चमके है ओस मणिका
सुरभित समीर विकसित,
महकी प्रत्येक कणिका।

कलियों का रूप निखरा,
भँवरों की टोली आयी
ऋतु है बड़ी सुहानी,
दिल में उमंग छायी।

नई आस मन बढ़ाती,
उत्साह पालनहारी।
सब हों सुखी हे प्रभुवर,
यही कामना हमारी॥