कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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नारी तुम नारायणी हो,
शक्तिपुंज हो,जीवनदायिनी हो
तुम सदा ही गतिमान हो,
इसलिए तुम सर्वत्र विद्यमान हो।
नारी तुम आद्यशक्ति हो,
तुम किसी से डर नहीं सकती
और जग में ऐसा कोई काम नहीं,
जो तुम कर नहीं सकती।
तुमने तो देवों को भी गोद खेलाया है,
अपने तपोबल से जग को समृद्ध बनाया है
तुम अबला कैसे हो सकती ?
जब तुम दूसरों को सबल बनाने वाली हो।
उठो, और अपनी शक्ति की पहचान करो,
खुद को तुम दीप्तिमान करो
याद करो जब तुमने ठाना था,
एवरेस्ट को बनाया अपना ठिकाना था।
अन्तरिक्ष में भी तुमने परचम लहराया है,
समुद्र के बीच अपना घर बनाया है
कलिंग युद्ध में शौर्य का लोहा मनवाया है,
अंग्रेजों को उसके घर का रास्ता दिखाया है।
तुम क्यों अपनी शक्ति को भूल जाती हो!
खुद को असहाय और निर्बल बनाती हो।
उठो, अपनी शक्ति की पहचान करो,
औऱ खुद का तुम गौरवगान करो।
अपने स्तन का पान करा तुम,
औरों को बलशाली बनाती हो
पर खुद की अस्मिता बचाने को,
‘बचाओ-बचाओ’ चिल्लाती हो।
तुम क्यों अपनी शक्ति को भूल जाती हो!
और खुद को शोभा की वस्तु बनाती हो
अपनी नैया की डोर दूसरों को थमाती हो,
और खुद कठपुतली बन जाती हो।
इसलिए, ऐ नारी शक्ति जागो,
और खुद की पहचान करो।
तुम अबला नहीं, सबला हो,
इस बात का अभिमान करो॥