डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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नारी शिक्षा की बन नव अरुणिमा,
सामाजिक अवसीदना बहुत सही।
अवरोध राह विविध संघर्ष अडिग,
महिला नेतृत्व प्रखरा शिखर रही।
चली रख ध्येय अटल मन पाठशाला,
लंपट फेंके पत्थरें धूल सही।
अविचल अनासक्त स्व निश्चय शिक्षण,
अध्ययन अध्यापन अनुकूल रही।
सावित्री बाई फुले वीरांगना,
महाराष्ट्र प्रथम शिक्षिका महिला थी।
सावित्री जन्म धन्य हो नायगांव,
तिथि ०३-०१-१८३१ ई. थी।
माँ लक्ष्मी बाई खण्डो जी पिता,
नववयस ज्योतिबा फुले ब्याही थी।
किन्तु थे प्रबल समर्थक स्त्री शिक्षा,
अध्ययन आश धेय मन पूर्ण हुई॥
थी आंग्ल प्रवीणा सावित्री मुदिता,
प्रथम कन्या विद्यालय खोली थी।
वय सतरह अठारह सौ अरतालिस,
नारी शिक्षा महान् सुधारक थी।
सन् इक्यावन नार्य जो दलित पीड़ित,
पृथक् विद्यालय शिक्षण स्थापित की।
की मुखर विरोध सामाजिक कुरीति,
विधवा शिरोमुंडन को बंद करी।
लखि जीर्ण शीर्ण वसन अवहेलित नारी,
प्यास आर्त्त खड़ी दलित नारी थी।
वर्जित उच्चवर्गीया नार्य जगत,
जातिबंध मुक्त पोखरा लायी थी।
बड़ा समर्थक आज़ादी समता,
समतुल्य धरा मनुज नर-नारी थी।
शिशुकन्या प्रतिबन्धक गृहस्थापित,
महिला सेवामण्डल निर्माणी थी।
सत्यलोक मंडल गतिविधि सक्रियता,
दलित अधिकार दिलाने उद्यत थी।
थी कुशल प्रशासिका संस्थान विविध,
प्लेग पीड़ित सेवारत अविरत थी।
असाध्य प्लेग महारोग ग्रसित स्वयं,
निशिदिन सेवारत वह सावित्री थी।
अठारह सौ सन्तानवे विकट वक्त,
लिखी स्वर्णिम अतीत पंचतत्त्व मिली।
थी महा पुरोधा साहित्य रचना,
‘सुबोधरत्नाकर’,’काव्यफुले’ थी।
उत्थान नार्य शक्ति गहन अध्ययन,
जीवन चरिता सावित्री प्रेरक थी॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥