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नासूर होते हैं भ्रष्टाचारी

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जो व्यक्ति जिस कार्य में निपुण होते हैं, उन्हें ही सुयोग्य अवसर देना चाहिए। वैसे हमारे देश में अनुभवी व्यक्ति का महत्व होता हैं, पर पढ़े-लिखे लोग कोई जरुरी नहीं हैं वे योग्य हों। वर्तमान काल में भ्र्ष्टाचार बहुत पुरातनपंथी शब्द हो गया है। आजकल यह शिष्टाचार माना गया गया और रूपया अब रिज़र्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर माने जाते हैं। नोट में गाँधी जी का कोई महत्व नहीं, जितना गवर्नर का है।
आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा होती है, जिसमें गंभीर से गंभीर बीमारियों में लाभ मिलता है। पहले पूर्व कर्म होता है, उसमें स्नेहन और स्वेदन होता है। स्नेहन को सामान्य भाषा में तेल लगाना कहते हैं। उसके बाद स्वेदन यानी पसीना निकालना होता है। ये दोनों कर्म जरुरी होते हैं। आज जितने भी नेता, अभिनेता, अफसर आगे बढ़े हैं और प्रगति की है, तो उसमे सबसे अधिक उपयोगिता तेल लगाने, चमचागिरी करने से भी सफलता मिलती है।
आजकल रेडीमेड का जमाना है, तो कौन तेल लगाए और कौन पसीना बहाए ? उसके एवज में अन्य-आय रामबाण औषधि है। पैसे से सब-कुछ पाया जा सकता है। जो जितना अधिक धन देता, उसका सफल होना संभव है या निश्चित है। शासन भी ऐसे स्वामीभक्त और अनुभवी लोगों को तरजीह देता है। कारण कि ऐसे लोग हमेशा डरे हुए रहते हैं और समय-समय पर दंड के भय से उनसे धन मिलता रहता है।
आजकल भ्रष्टाचारी अधिकारियों को मनपसंद सरकार में मनमाफिक पद सौंपा जाता है, जिससे कि वे उस विभाग को और अच्छी तरह से खोखला कर सके। रिश्वतखोरी से जीविका करने वाले अन्यायी रिश्वतखोर अपनी माता का स्तन भी भक्षण कर लेते हैं। अपने हितैषियों से भी रिश्वत ले लेते हैं, फिर दूसरों से रिश्वत लेना तो साधारण बात हैं।

केवल एक बार धोया हुआ स्नान वस्त्र (धोती) क्या अपनी मलिनता छोड़ सकता है ? नहीं छोड़ सकता, अर्थात जिस प्रकार नहाने का कपड़ा बार-बार पछाड़कर धोने से साफ़ होता है, उसी प्रकार अधिकारी वर्ग भी बार-बार दण्डित किए जाने से संचित रिश्वत आदि का गृहित धन दे देता है।
सरकार ने जितने अधिक भ्रष्ट अफसर, उतने अधिक कुलीन और पसंदगी वालों को पदोन्नत किया है, वे शासन को गर्त में जरूर ले जाएंगे। जब मालूम है कि, ये भ्रष्ट हैं तो उन्हें दण्डित न कर पुरस्कृत कर रहे हैं तो ऐसे में विकास तो संभव नहीं होगा, पर मुखिया और उन भ्रष्टों का विकास सुनिश्चित है, क्योंकि यह नासूर होते हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।