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निपटारा आयोग में भी हिंदी ने जगह बनाई

डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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जनभाषा में न्याय!

‘राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग’ उपभोक्ताओं के शोषण के निवारण और उसकी सुनवाई की देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है। अगर यदि किसी उपभोक्ता के साथ किसी उत्पादक कंपनी या सेवा प्रदाता द्वारा किसी भी प्रकार की अनियमितता की जाती है, जिससे उसके उपभोक्ता अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या उसके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी होती है तो उपभोक्ता आयोग में न्याय पाने के लिए अपील कर सकता है, लेकिन अब तक तो यही रहा था कि इसके लिए आपको अंग्रेजी आती हो। यह अत्यंत आश्चर्य और क्षोभ का विषय रहा कि आजादी के ७५ वर्ष बाद भी उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के लिए पर व्यथा निवारण हेतु अपनी भाषा में अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था। कहने का आशय यह कि, उपभोक्ता को अपने अधिकार पाने के लिए भी अन्याय का शिकार होना पड़ता है। कारण यह कि उपभोक्ताओं को यह अधिकार ही नहीं था कि, वह अपने अधिकार के लिए या अपने साथ हो रहे अन्याय के लिए केंद्रीय और राज्य आयोग आदि में अपनी बात अपनी भाषा में रख सकें।
अगर अब आपको बात अंग्रेजी में रखनी है तो जाहिर है कि एक वकील भी करना पड़ेगा। कहने का मतलब यह है कि आपको अपनी बात सीधे कहने रखने का अधिकार नहीं। फिर वहां वकील क्या कहेगा और क्या नहीं कहेगा, आपको पता नहीं। ऐसे अनेक मामले हैं जिसमें कई उपभोक्ताओं ने राष्ट्रीय और राज्य आयोग में अपनी बात अपनी भाषा में रखने की मांग की, लेकिन उपभोक्ता को न्याय दिलवाने से अधिक अंग्रेजी पर अडिग था। कई जनभाषा में न्याय, जन अधिकार और जनतंत्र समर्थक संस्थाओं और व्यक्तियों ने इसके लिए सरकार को लिखा भी, लेकिन जैसा होता है कि या तो कोई उत्तर नहीं मिलता, या फिर एक मंत्रालय दूसरे मंत्रालय की तरफ इशारा कर देता है, यानि वही ‘ढाक के तीन पात।’ कहा जाता है कि जब इरादे नेक और जनहित के हों और निरंतर समझदारी के साथ प्रयास किए जाएँ तो सफलता भी देर-सवेर मिलती है। न्यायिक क्षेत्र में अंग्रेजी के एकाधिकार के किले के दरवाजे पर लगे मोटे-मोटे मजबूत तालों को तोड़ने के लिए जनभाषा में न्याय के कर्मठ सेनानी निरंतर प्रयास कर रहे हैं और अब छोटी -बड़ी सफलताएँ भी मिलने लगी हैं।
एक पीड़ित व्यक्ति (उपभोक्ता) विनोद शर्मा ने डाक विभाग की सेवा में त्रुटि के मामले को अपने अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद (जनभाषा में न्याय के पक्षधर) के माध्यम से राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग के समक्ष रखा,(याचिका सं -५८६/२१८ विनोद शर्मा बनाम महानिदेशक डाक विभाग, नई दिल्ली) लेकिन यहाँ तो अंग्रेजी का ही एकाधिकार था। राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद द्वारा पहली बार हिंदी में मुकदमा दायर किया गया जिसे अदालत ने लेने से इनकार किया।अधिवक्ता ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद ३५० का हवाला दे कर जनभाषा में उपभोक्ता की व्यथा निवारण की सुनवाई हिंदी में करने की बात को सशक्त ढंग से रखा। अधिवक्ता द्वारा बताए नियम-कायदे-कानून के आधार पर मुकदमा मंजूर हुआ। इस मुकदमे में भारत भाषा सेवी हरपाल सिंह राणा भी हिंदी के समर्थन में पक्षकार बने और उन्होंने भी इसके समर्थन में शपथ-पत्र दिया। आखिर अंग्रेजी एकाधिकार का ताला टूटा। वर्तमान में मुकदमा हिंदी में मान्य हो गया है और कार्रवाई आगे बढ़ रही है। अततः अधिवक्ता इंद्र देव प्रसाद की मेहनत रंग लाई और अब आवेदन ही नहीं, बहस भी हिंदी में हो सकेगी।
अब जबकि, पूरा भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो यह भारतीय भाषाओं के लिए किसी बड़ी सफलता से कम नहीं। अब जनभाषा में न्याय के संघर्ष को और तेज करते हुए न्याय क्षेत्र में अंग्रेजी के एकाधिकार के जनतंत्र विरोधी दुर्ग को ढहाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

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