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निहारूं जुगल छवि नित न्यारी

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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डम-डम डमरू बज रहे हैं,
ढोल-नगाड़े खूब बजे हैं
धूम-धड़ाके खूब बजे हैं,
गौरा संग लगन रचाने को
दूल्हे शंकर खूब जचे हैं।
डम-डम डमरू…

देह मृग-छाला भस्म रमाई,
सकल बारात भांग पिलाई
भुजंग विषधर कंठ लटकाए
भूत-पिशाच टोली बनाए।
डम-डम डमरू…

बैल सवार हो, भोले आए,
विकराल-अकराल दर्श दिखाए।
देख चराचर देख भरमाए,
बंधु, मातृ-पितृ शोक समाए।
डम-डम डमरू…

देख रूप निराला गौरा,
भोले बाबा खूब समझाए
बोली जन्म-जन्म संग हमारा,
क्यों धराधर ये खौफ निहारा ?
डम-डम डमरू…

इसलिए गौरा जग में आई,
शिव गले वरमाला पहनाई
सकल ब्रम्हांड, खुशियाँ मनाए,
देव-लोक भू पुष्प बरसाए।
डम-डम डमरू…

जगत निराली प्रेमी जोड़ी,
शिव, शक्ति स्वरूपा अद्भुत जोड़ी
जग में आदर्श स्थापित करने,
रूप रचा शुभ रीत बनाई।
डम-डम डमरू…

पुनः-पुनः ‘सरोज’ पग नवाऊं,
प्रेम रमी मैं बोल न पाऊं।
कर जोर अर्ज हे! शिव-गौरी,
निहारूं जुगल छवि नित न्यारी॥
डम-डम डमरू…

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।