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नोंक-झोंक

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नोंक-झोंक अविरत कलह, खींचतान परिवार।
सात जन्म सतफेर भी, पति-पत्नी तकरार॥

अधिकारी वर्चस्व का, तू-तू मैं-मैं रोज।
जीवन संगी परस्पर, नित्य कलह की खोज॥

नैहर चर्चा कलह की, वजह कलह शुरूआत।
पत्नी दावानल बनी, खोती खुद जज़्बात॥

असहनीय निंदा तनिक, मातु-पिता परिवार।
दुर्गा फिर काली बनी, रौद्र रूप अवतार॥

खाना-पीना बन्द सब, बही त्रिवेणी धार।
आप्लावन ढाती कलह, कौन धार पतवार॥

तहस-नहस रिश्ते मधुर, पति-पत्नी सम्बन्ध।
कहाँ प्रीत सम्मान मन, आलिंगन रति गन्ध॥

नोक-झोंक बढ़ती निरत, राग-द्वेष प्रतिशोध।
सुख-दु:ख खुशियाँ गम भूले, दहके आपस क्रोध॥

पति-पत्नी जीवन सरित, नव भविष्य सन्तान।
दया क्षमा ममता हृदय, करुणा नारी शान॥

कौलिक संवाहक पिता, रक्षक सम आकाश।
दाम्पत्य दे परस्पर, नव भविष्य कुल आश॥

अर्द्धांगी है ज़िंदगी, गीति-प्रीति संगीत।
तजें वृथा परिवार का, दोषारोपण रीत॥

पा पद सत्ता धन विभव, कारण मद टकराव।
पति-पत्नी रिश्ते नरक, कलह जिरह उद्भाव॥

पति-पत्नी सम्प्रीति मन, स्वर्गिक सुख संसार।
नोंक-झोंक दम्पति प्रकृति, जीवन का उपहार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥