सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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छलकती हैं आँखें ज़रा ‘सी खुशी पर।
जो गुज़री है हम पर न गुज़रे किसी पर।
परेशाँ हमें देखकर हँसने वालों।
हँसी आ रही है ‘तुम्हारी ‘हँसी पर।
मुसीबत उठाई है इतनी जहाँ में।
तरस’ आ रहा है ‘हमें ज़िन्दगी पर।
मुक़ाम अपना ख़ुल्देबरीं में था लेकिन।
निकाले गए हम ज़रा-सी ‘कमी पर।
बग़ल में ‘छुरी ले के मिलता है हर इक।
भरोसा करें क्या बताओ किसी पर।
सितमगर ही काफ़ी है लिखना तुझे बस।
लिखें और क्या हम तिरी कजरवी पर।
‘फ़राज़’ उनसे काफ़ी छुपाई थी हमने।
मगर बात दिल की न दिल में दबी पर॥