श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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तेरी चाहतें और तेरी हसरतें,
सभी भुला दिया है मैंने
प्यार करती थी मैं तो,
तुमसे लेकिन तुम
बेवफा निकले,
पत्थर जैसे
कठोर।
तुम क्या जानोगे प्रीत है क्या,
तुम तो परदेसी जो ठहरे
खोया तुमने रुमाल को,
छुप के नाम लिख
प्यार से भेजा,
भुला दिया
कठोर
पत्थर जैसा दिल है तुम्हारा,
तुम रंग बदलने वाले हो
झूठी बातें करते हो,
वादा तोड़नेवाले
तुम मनचले,
कहाते हो
कठोर।
सूख गया तेरा दिया गुलाब,
फिर भी संजोए रखी हूँ
जब याद तेरी आती है,
उसे मैं देख लेती हूँ
तुम बड़े बेदर्द,
हो निर्दयी
कठोर
कितनी दुआएं की रब से,
दुआओं में भी तुम्हीं को
रोज माँगा करती थी,
नजर न लग जाए
मेरे मित्र को,
भुल गए
कठोर।
मिले अपने बन के हुए पराए,
ले जा अपना दिया गुलाब
मेरे जैसा वह मुरझाया,
अब नहीं है प्यार
करने की चाह,
तुम तो हो
कठोर।
इसलिए मैंने
तेरी चाहतें तेरी,हसरतें सभी भुला दी॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।