सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**********************************
है अषाढ़ की पहली वर्षा,
रंग कुछ बदला हुआ
खुल के बरसी हैं घटाएं,
मन मगन पुलकित हुआ।
गरज कर बादल जो बरसे,
मच गया एक शोर-सा
घर से बच्चे निकल बाहर,
नृत्य करते मोर-सा।
पहली बारिश का है अपना,
कुछ मज़ा एक अलग सा
ख़ुशबू मिट्टी की जो आती,
सुखद अनुभव शरद-सा।
पहली बारिश में ही सड़कें,
भर गईं तालाब जैसी।
आगे क्या मालूम क्या हो!
हो तैयारी समर जैसी॥