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पाप-प्रवृत्ति

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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किसी में ‌न हिम्मत है डराएगा हमको,
स्वयं किया हर पाप हमीं को डराता है
बाहर के शत्रु से लड़-भिड़ कर जीतो,
मन शत्रु बन हमको नित्य ‌हराता है।

बुरा ही देखें, बुरा ही सोचें जब रह- रह,
पाप-वृत्ति चुप से अंदर घुस‌ जाती‌ है
मन-पापी से मिलकर मजबूती‌ पाये,
अपना अनिष्ट तुमसे आप कराती है।
दर्शन, वाचन, श्रवण संग में सजग है जो,
पाप-कर्म से मुक्त वो रह के दिखाता है॥

मिलती पराजय मन को मित्र मान बन्धु,
शास्त्र-वचन अध्यात्म से जीवन सुंदर है
तजे विवेक कुसंग, कुटिल संग मन भाए,
खुल न जाए दुष्कर्म सदा भय अंदर है।
चिंता, भय संग सोच अधिकता घेरे फिर,
रोग पलित तन खुद परास्त हो जाता है॥

धन, पद, वैभव, पहुँच करे पापी धारित,
साथ रहेगी सदा-सदा नित अशांति ही
चिंतन-दूषित रोग-दोष लेकर आता,
मरण न दे सकता उसको विश्रांति ही।
जनम-जनम की प्रेत-योनि स्वीकारे जो,
वही अकड़ के सबको नित्य दबाता है॥

बुरे को बुरा नहीं कहता तो ध्यान ये रख,
भले को बुरा कहा तब दुर्गति निश्चित है
क्षमा दान मिल जाए तुझे ये न संभव,
धन का लालच प्रभुवर को न किंचित है।
प्रभु पाप के साथ न हित में अधर्मी के,
समझ-समझ रट गीता-ज्ञान बताता है॥

जब भी करे तू कर्म बुरा तो अंतर- घट,
दंभित शोर में सत्य की धीमी-ध्वनि उठे
पकड़-पकड़ के पैर खींच दुष्कर्म सदा,
अंतर-मन शिव गुरु प्रभु समझायें सठे।
वैभव-सुख हैं मन के अटकल-भटकावे,
सोच-समझ बिन तू सबमें फंस जाता है॥

परिस्थिति बाहर से आ जाए जो कठिन,
मन अन्दर का चिंतन स्वस्थ सदा रखना
धर्म की हानि होती किसी भी लालच से,
कितना बड़ा हो बन्धु सदा-सदा तजना।
विलासिता की खातिर अनर्थ करता जो,
अन्त में अर्थ भी उसको बचा न पाता है॥

सत मग चालक न होवे है अधिक धनिक,
फिर भी सबसे प्यारा प्रभु को वह जग में
जितना क्रूर पाप हो जाए जिस जालिम,
उतना दान-दया का दिखावा जग भर में।
न्याय बिकेगा न शिव ‌‌के न्यायालय में,
जनमों-जनम कठोर दण्ड वह पाता है।

होके निडर, निष्पाप, निष्कलंकी बन कर,
हरेक सोच को मात्र विवेक कसौटी कस
हुआ भूल वश पाप तो जब भी पता चले,
करके प्रायश्चित नाम प्रभु का ले तू‌ बस।
चिंता धर मन, बुद्धि स्वस्थ करले अपनी,
बुद्धिमान बस शिव की शरण में जाता है॥

मरता नहीं कोई हरि नाम जप ‌ भूखा रह,
एक मच्छर के काटे कोई मर जाता है
सह-सह पीड़ा नित-नित भोग हराये जो,
जप-जप नाम प्रभु का वह तर जाता है।
एक मच्छर की मौत मरो ना इस जग में,
प्रभु का नाम ही निर्भय हमें बनाता है॥

किसी में न हिम्मत है डराएगा हमको,
स्वयं किया हर पाप हमीं को डराता है।
बाहर के शत्रु से लड़-भिड़ कर जीतो,
मन शत्रु बन हम‌ को नित्य हराता है॥