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पीओके:डर से सहमा पाकिस्तान

ललित गर्ग

दिल्ली
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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में पाक सरकार की तानाशाही, उदासीनता, उपेक्षा एवं दोगली नीतियों के कारण हालात बेकाबू, अराजक एवं हिंसक हो गए हैं। जीवन निर्वाह की जरूरतों को पूरा न कर पाने से जनता में भारी आक्रोश एवं सरकार के खिलाफ नाराजगी चरम सीमा पर पहुंच गई है। गेहूँ के आटे और बिजली की ऊँची कीमतों के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन चल रहा है। प्रदर्शनकारियों एवं सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों के साथ ही पीओके के लोग पाक सरकार की नाकामी के खिलाफ सड़कों पर हैं। पाकिस्तान को पीओके के हाथ से निकल जाने का डर सताने लगा था। पीओके की आवाज दबाने के लिए पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार ने चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल को तैनात किया है व आन्दोलनकारियों को दबाने की दमनकारी कोशिशें की जा रही है, पर पीओके के बगावती तेवर देख पाकिस्तान के हाथ-पाँव फूल गए हैं।

दरअसल, १९४७ में पाक के कब्जे के बाद से ही पीओके लगातार सरकार की उपेक्षा व उत्पीड़न झेल रहा है। उसकी समस्याओं और विकास पर ध्यान देने की बजाय पाकिस्तान का जोर वहां आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर खोलने पर ज्यादा रहा। पाक की सरकार ने पीओके का इस्तेमाल भारत में अशांति, आतंक एवं हिंसा फैलाने के लिए किया है, और वह पीओके के माध्यम से कश्मीर को हड़पने की हर संभव कोशिश करता रहा है, लेकिन वहां के निवासियों की जरूरतों पर कभी ध्यान नहीं किया। यूँ तो अभी समूचे पाकिस्तान के हालात बद से बदतर हैं, गरीबी, महंगाई एवं आर्थिक दिवालियापन से यह घिरा है। तब भी दुनियाभर से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए झोली लिए घूम रहा पाकिस्तान भारत में अशांति एवं आतंक फैलाने से बाज नहीं आ रहा है। दरअसल, पाकिस्तानी कमरतोड़ महंगाई एवं जनसुविधाओं से जूझ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ३ अरब डॉलर के कर्ज की मंजूरी देते समय कड़ी शर्तें लगाई थीं, जिसके कारण स्थिति और खराब हो गई है। बिजली दरों में बढ़ोतरी से दिक्कतें बढ़ गई हैं और लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं। इन्हीं जटिल हालातों के बीच पीओके के हालात पाकिस्तान के लिए नया सिर दर्द बन गया है। पाकिस्तान के सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों को दबाने की जितनी कोशिश कर रहे हैं, विरोध प्रदर्शन उतना ही उग्र हो रहा है। बेकाबू होते हालात १९५५ के अवज्ञा आंदोलन की यादें ताजा कर रहे हैं, जब पीओके के लोगों और पाकिस्तानी फौज में सीधा टकराव हुआ था। अब फिर पीओके के लोगों के उबलते गुस्से ने पाकिस्तानी हुकूमत के माथे पर बल बढ़ा दिए हैं, समस्या को अनियंत्रित एवं अनिश्चित हालात में पहुंचा दिया है।
पीओके के सबसे उत्तरी इलाके गिलगित बाल्टिस्तान के लोग पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यह भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ मिलाए जाने की मांग कर रहे हैं। पीओके में आजादी के नारे लगने एवं उसे लद्दाख के साथ मिलाए जाने की मांग के बाद शहबाज शरीफ सरकार और पाकिस्तानी सेना दोनों सकते में है। पाक के अत्याचार के खिलाफ पीओके की जनता जिस तरह खड़ी हो गई, उसने पाकिस्तानी नीति निर्माताओं को तनाव में ला दिया है। हजारों की संख्या में कश्मीरी लोग जगह-जगह सड़कों पर उतर आए तो पाकिस्तान को पीओके के हाथ से निकल जाने का डर सताने लगा है। पीओके में विरोध को दबाने के लिए पाकिस्तानी दमन चक्र शुरू हो गया है। भाजपा की मोदी सरकार के मुख्य एजेंडे में पीओके को पाकिस्तान से मुक्त कराकर भारत में शामिल करना पहले से निश्चित है। ताजा संघर्ष एवं आन्दोलन भाजपा की राह को निश्चित ही आसान करेगा।
भारत के विभाजन के तुरंत बाद पाकिस्तान द्वारा जम्मू और कश्मीर की रियासत पर आक्रमण करने के बाद पीओके बनाया गया था। पाकिस्तानी सेना और आदिवासी हमलावरों के हमले के तहत महाराजा हरिसिंह ने भारत से सैन्य मदद मांगी, जिसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को पूरी रियासत पर कब्जा करने से रोक दिया। अब लगभग ७-८ दशक से अधिक समय के बाद पाक भारी संकट में फंस गया है, जबकि भारत आर्थिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक मापदंडों में तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं अपनी सैन्य शक्ति को सशक्त कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में विकास की गंगा बह रही है, वहां के लोग शांति, शिक्षा, व्यापार एवं विकास की दृष्टि से नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैं, जबकि पीओके कम मानव विकास के साथ आर्थिक प्रगति से वंचित जनजीवन से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। स्वयं को ठगा महसूस करते हुए पीओके की आम जनता अब शांति चाहती है, विकास चाहती है, जो पाकिस्तान में रहते हुए असंभव है। आंदोलन से काफी पहले पीओके के लोगों का भारत के प्रति झुकाव समय-समय पर मुखर होता रहा है। पाक की राजनीति की दूषित हवाओं ने पीओके की चेतना एवं सोच को आन्दोलनकारी बना दिया है। सत्ता के गलियारों में स्वार्थों की धमा-चौकड़ी देखकर वहां के लोग समझ गए कि उनका शोषण ही हो रहा है। यही कारण है कि, पीओके के लोग अपने इलाकों को भारत के साथ मिलाने को ही अपने हित एवं शांतिपूर्ण जीवन के अनुरूप मानने लगे हैं।

पीओके के लोग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का भी विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि, गलियारे की आड़ में उनकी जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए किया जाएगा और भारत के जवाबी हमले उन्हें झेलने पड़ेंगे। चूंकि, भारत अब पहले वाला भारत नहीं रहा, उसकी सैन्य ताकत का मुकाबला करना पाकिस्तान के लिए संभव नहीं रहा है, इसलिए बिना मतलब भारत के आक्रमण को झेलने से स्वयं को बचाने के लिए पीओके के लोग भारत में विलय को ही उचित मानते हैं। पीओके में विरोध प्रदर्शन के दौरान जिस तरह भारतीय तिरंगा लहराया जा रहा है और विलय के स्वर उठ रहे हैं, उससे भविष्य में इस विवादित क्षेत्र पर निर्णायक पटकथा लिखे जाने के आसार नजर आ रहे हैं। भारत को पीओके के घटनाक्रम पर नजर बनाए रखने की जरूरत है, ताकि इससे हमारे सुरक्षा हितों पर प्रतिकूल असर न पड़े एवं भविष्य की नीतियों का निर्धारण करने में सुविधा रहे।