डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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‘क्या अच्छी दोस्त…? (विश्व पुस्तक दिवस विशेष)…
पुस्तक अपनी अच्छी साथी,
मैं क्या-क्या तम्हें बतलाऊँ।
पुस्तक प्रेम का अलग मजा,
है इसकी बात बड़ी निराली
बिना पुस्तक बात बने न,
जीवन लगता खाली-खाली।
ज्ञान का भंडार है इसमें,
दिल दुनिया की तस्वीर है
हमें कला सिखाती जीने की,
मिलती मोक्ष की तदबीर है।
दु:ख-दर्द अकेले की साथी,
मैं क्या-क्या तुम्हें बतलाऊँ…॥
पग-पग चलना हमें सिखाती,
सही राह भी हमें दिखलाती
अपनी अच्छी जीवन साथी,
मुसीबत में साथ निभाती।
मस्तिष्क को सक्रिय बनाती,
अवसादों से हमें बचाती है
नये विचारों, भावनाओं की,
राह अनेक दिखलाती है।
हमराही बनकर राह दिखाती,
मैं क्या-क्या तम्हें बतलाऊँ…॥
वेद*पुराण का ज्ञान है इसमें,
भूत भविष्य की धरोहर है
आविष्कार की जननी है ये,
छन्द और अलंकार मनोहर है।
दिल-दिमाग को ताजा करती,
व्यक्तित्व हमारा गढ़ती है
लक्ष्य प्राप्ति में हो सहायक,
जग में भी मान बढ़ाती है।
अज्ञानता को दूर भगाती,
मैं क्या-क्या तुम्हें बतलाऊँ…॥
पारिवारिक मूल्यों को सिखाती,
घृणा, द्वेष और दर्प मिटाती
मर्यादा और संस्कार जगाकर,
राष्ट्र-प्रेम बलिदान सिखाती।
मोर का पंख छुपाए अन्दर,
पुष्प गुलाब के अति सुंदर
प्रेमीजन का संदेश पहुंचाती,
राज खोलती छुपे जो अन्दर।
सम्बन्धों को गाढ़ा करती,
मैं क्या-क्या तुम्हें बतलाऊँ…॥