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पैसे पेड़ पर नहीं उगते

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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आज शर्मा जी बहुत खुश थे। वह जल्दी घर पहुँचना चाहते थे,जिससे घर जाकर खुश खबरी सुना सकें। उनकी अकेली लाड़ली बेटी शुचि का सम्बन्ध इतने बड़े घर में होने जा रहा था। सचिन इंजीनियर था और अगले महीने विदेश जा रहा था। सचिन के माँ-बाप उसकी शादी करने की जल्दी में थे।
घर पहुँच कर अपनी पत्नी दोनों बेटे और बहुओं को आवाज देकर बुला लिया। सब आ गए तो उन्होंने सबसे कहा कि,-शुचि सचिन को पसंद है।
दोनों बेटों ने पूछा-पापा उनकी मांग क्या है।
शर्मा जी ने कहा-बेटा मांग तो है। मैंने कुछ इन्तजाम किया हुआ है,क्योंकि तुम लोगों को सब पता है। ये घर बनवाने और तुम्हारी पढ़ाई में बहुत खर्चा हो चुका है,इसलिए कुछ इन्तजाम तुम दोनों कर दो।
इतना कह कर शर्मा जी अपने कमरे में चले गए। रात को वह उठे तो देखा बेटों के कमरे की लाइट जली हुई थी। वहां से बातों की धीमी-धीमी आवाज आ रही थी। वह उस तरफ चले गए,पर जब उनके कानों में बेटों और बहुओं की आवाज़ें आई तो वह अचम्भित रह गए। बहुएं बेटों से कह रही थी -आप दोनों मना कर दो कि,पैसों का इन्जाम नहीं होगा। यदि आपके ऊपर खर्च किया तो उनका फर्ज था। आपके भी बच्चे हैं। आगे दिन पर दिन खर्च बढ़ रहे हैं और क्या पैसा पेड़ पर उगता है,जो सीजन आने पर आ जाएगा।
शर्मा जी इससे आगे नहीं सुन पाए। हाँ,उन्होंने निर्णय कर लिया कि घर उनका है। इस पर केवल मेरी बेटी का अधिकार होगा और वह आराम से सो गए। यह सोच कर कि,कल पैसों का इन्तजाम कर लेंगे,क्योंकि बेटी की शादी करना भी तो उनका फर्ज है।