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पैसों की बेबसी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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पैसों का नित जंग है,पैसा ही नवरंग।
रिश्ते-नाते मान यश,बिन पैसे बदरंग॥

पैसे ही ऊँचाइयाँ,पैसा ही सम्मान।
पैसों के महफ़िल सजे,पैसा ही भगवान॥

पैसों पर शिक्षा टिकी,पैसों पर रोज़गार।
हो समाज में हैसियत,रिश्तों का आधार॥

नीचे से संसद तलक,बस पैसों का खेल।
आजीवन हर काम में,पैसों का गठमेल॥

रोज-रोज का झूठ छल,राग-द्वेष अपमान।
बस पैसों की चाह में,लेना है अहसान॥

पैसा ही इन्सानियत,पैसा ही ईमान।
आतिथेय पैसा टिका,मानदेय अरमान॥

सदा अदालत न्याय अब,पैसों पर है प्राप्त।
बिन पैसे की जिंदगी,कहाँ मिलेंगे आप्त॥

पति-पत्नी माँ-बाप हो,बेटा-बेटी साथ।
पैसों से सब हैं जुड़े,तजे पैसे बिन हाथ॥

दिखावटी रूमानियत,है उन्नति आधार।
धर्म-जाति-भाषा जगह,पैसा ही तकरार॥

पैसों से खिलता चमन,पैसा ही मुस्कान।
कौन पराया या अपन,पैसे से पहचान॥

मीत नीति मन प्रीति हो,वैवाहिक आचार।
बिना अर्थ सब व्यर्थ ही,जीवन है दुश्वार॥

बिन पैसों का आदमी,जीवन है सुनसान।
लावारिस फेंका हुआ,लाश जन्तु तू मान॥

पैसों की हैं चाबुकें,इंसानों की पीठ।
पर पैसों की बेबसी,जिंदा है बन ढीठ॥

दौलत की चाहत बला,बनता निर्मम लोक।
छल कपटी मिथ्या निरत,पैसा जीवन शोक॥

करनी है पैसा बचत,जो भी हो तकनीक।
बिन पैसे बिन आदमी,समझ पान की पीक॥

कवि ‘निकुंज’ महिमा अगम,पैसा मायाजाल।
पायी शिक्षा डिग्रियाँ,बिन पैसे बदहाल॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥