संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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सामना नहीं हुआ,कभी देखा नहीं,
नींद से साक्षात्कार कभी सोचा नहीं।
कैसे गिरा,कैसे खोया,आगोश में,
कभी नींद में मैंने,नींद से पूछा नहीं।
अन्तर्मन में,उस चेतन जन में,
कोष-कोष भीतर मन मेंडूबा नहीं।
आती-जाती,बिन बताए आ ही जाती,
गिरा ख्वाब,कैसे ? मैंने खोजा ही नहीं।
कौन-सी आँखों से मैं देखूं उसको,
दृष्टांत का दृष्टा से कभी पूछा ही नहीं॥