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प्रकृति और अस्तित्व

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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सूरज आरक्त होकर पश्चिम की देहरी पर ढलने जा रहा है। अपने सम्पूर्ण ओज से ढुल-मुल स्वर्णिम किरणों का आख़री स्पर्श सृष्टि पर फेरता हुआ धीरे-धीरे क्षितिज के उस पार ओझल होता जा रहा है। शाम अपने रंगीन अंदाज से छम-छम पैंजनिया बजाती हुई बिल्ली के कदमों सी हौले-हौले उतरने लगी है। मक्का भरे खेतों से लौटते हुए सामने जैसे ही मेरी नजर पड़ी तो सफ़ेद झक्क बगुलों का एक बहुत बड़ा झुण्ड अत्यंत नीचे से मेरे सामने से गुजर गया। वाह! क्या दिलकश उड़ान है। संध्या बेला में बगुलों का इस प्रकार गुजरना मुझे बहुत भाता है। पंखों की मनमोहक हलचल, गर्दन धंसाकर चोंच क़ो उपर उठाकर कतारबद्ध और बीच -बीच में विशिष्ट आवाज करते हुए बड़े शालीन ढंग से बगुलों की टोली गुजरती जा रही है।
नजरों से ओझल होने तक मैं उस टोली क़ो देख ही रहा था, कि खेत की मेढ़ से मयूरों का एक झुण्ड बहुत तेजी से गुजरता हुआ पास की सघन झाड़ियों में अदृश्य हो गया। आगे बढ़कर उनकी राह पर मैंने देखा कि कुछ मयूरों के सतरंगी पंख जमीं पर गिर पड़े हैं। उन लुभावने पंखों को मैं उठाता गया और देखा कि मेरे हाथ में सतरंगी पंखों का झुण्ड एकत्रित हो गया है।

प्रकृति कितने उदार हाथों से सौंदर्य लुटाती है इन पंछियों पर! वाकई पंछी पृथ्वी का अलंकार है। अगर ये पंछी न होते, तो आसमान कितना सूना-सूना लगता… सोचते-सोचते मैं नदिया किनारे आ पहुंचा हूँ। ओह! ये नदिया कितना खूबसूरत गीत गा रही है। कल-कल बहते पानी के झिलमिलाते प्रवाह से कैसा सुंदर गीत प्रस्फुटित हो रहा है यह!मेरे पैर अपने-आप ठिठक गए और भौंचक्का होकर नदिया का गीत मैं सुनता जा रहा हूँ। मुझे लगता है यह नदिया जरूर पृथ्वी का गीत गा रही है। अथाह सौंदर्य से उमड़ते इन कल-कल स्वरों में कितनी नजाकत और शालीनता है। पानी की सतह क़ो चूमती संध्या धीरे-धीरे विदा होती जा रही है और बहुत शांतिपूर्ण ढंग से अंधेरा छाने लगा है। नदिया के स्वरों में और भी ओज बढ़ता जा रहा है और सम्पूर्ण तल्लीनता से मैं उन स्वरों में घुलता जा रहा हूँ, पिघलता जा रहा हूँ। अपने-आपमें विलीन होता जा रहा हूँ। नदिया का तरन्नुम मेरे अंतस क़ो छूने लगा है। नदिया मुझमें और मैं नदिया में बहता जा रहा हूँ। कैसी सौंदर्यपूर्ण और ओज से लबालब अनुभूति है यह! ओह! यह प्रकृति कितनी ममतामयी और रमनीय है। जो थोड़ा भी उसका रसिक है, उसको अपने में समा लेती है, अथाह प्यार लुटाकर अपने अस्तित्व के प्रति सजग करती है। नदिया के बहते प्रवाह में उतरकर मैं धारा क़ो महसूस कर ही रहा था कि एक मछली मेरे पैरों क़ो गुदगुदी करते हुए निकल गयी। उसके मुलायम स्पर्श से मैं दिल-दुनिया मैं जब वापिस लौटा, तो संध्या विदा होकर काफी रात हो चली थी। नदिया की सतह पर टिमटिमाते जुगनू उड़ते हुए पड़ोस की झाड़ियों में घुसने लगे थे, तब सहसा जेब में पड़े मोबाईल की ध्वनि मुझे सुनाई पड़ी। फोन उठाकर देखा तो लगभग ७-८ कॉल आए हुए थे और मुझे एक भी सुनाई नहीं दिया था… वाह मेरी प्रकृति! कितने प्यार से तुम अपनी ओज में समा लेती हो! अपने मुलायम अहसासों से अपने अस्तित्व के प्रति कितनी नजाकत से सजग कर देती हो, जहाँ अपने आस्तित्व के मायने समझने लगते हैं। महामना प्रकृति तुम्हारे इस औदार्य का किन शब्दों में वर्णन करूँ, तुम शब्दातीत हो।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।