सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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धरती नदियाँ और पहाड़
देते हमको निशदिन ज्ञान,
सहनशीलता धरती जैसी
अडिग रहो पर्वत के जैसे,
नदियों सी तुम बना के राह
चलो सोच कर जहाँ हो चाह।
वृक्ष सिखाते ले लो ज्ञान
सदा नम्र हो तव व्यवहार,
बिन माँगे तुम देना सीखो
मधुर-मधुर वाणी उच्चार,
खिल-खिल कर फूल ये कहते
हँस कर सह लो शूल का वार।
दिनकर की देखो तुम चाल
करता नहीं कभी आराम,
चिड़िया उठ कर निकलें प्रात:
कहती हैं सुन मेरी बात।
जंगल नहीं बचे हैं आज,
कहाँ बिताऊँगा मैं रात ?