प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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प्रभु जी तोसे नेह लगाऊँ जी,
करुणा निधि हो खान गुणों की,
गुण नित गाऊँ जी।
मान अपमान से ध्यान हटाओ,
तुमको ध्याऊं जी,
तुम ही गुरु हो, तुम ही सखा हो,
तुम को मनाऊँ जी।
मेरे शीश पे हाथ धरो अब, भव तर जाऊँ जी,
माया विष पी नित्य-निरंतर,
अगन बुझाऊँ जी।
शेष आस ना है तृण भर की,
तोसे निभाऊँ जी,
भोग, भजन, भोजन ना तुम बिन,
अब कर पाऊँ जी।
स्वारथ व्यापे जग जन नाते,
भटक बिताऊँ जी,
तन, मन, धन की सुधि भुला दो,
तुममें समाऊँ जी।
शीश मुकुट तुम हृदय प्रकट तुम,
लगन लगाऊँ जी,
अपने योग्य बना दो तुम ही,
मिलने आऊँ जी।
तुमरे वंदन के सुर प्रेम से,
नित्य लगाऊँ जी,
‘शिवदासी’ बन करके स्वामी,
मान बढ़ाऊँ जी।
प्रभु जी तोसे नेह लगाऊँ जी।
करुणा निधि हो खान गुणों की,
गुण नित गाऊँ जी॥