राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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ज़िंदगी है एक प्रियतम,
जो हमेशा ही मुस्कुराती है
गमों के अंधेरे में भी रहकर,
हमें तो जीना सिखलाती है।
प्रियतम ज़िंदगी से मैंने की वफ़ा,
फिर क्यों हमसे बेवफा हो जाती है
मेरे सत्कर्मों की वफ़ा की,
कदर क्यों नहीं निभाती है ?
सोचता हूँ मुझसे हुई कोई गलती,
या ज़िंदगी मेरी यूँ ही रूठ जाती है
क्या कोई भाग्य लेख का है परिणाम,
या पिछले जन्म का कर्मफल दोहराती है।
ज़िंदगी में हमने दिया साथ सबका,
सबने साथ पा हमेशा ही हर्षाया है
फिर आज क्यों रिश्ता थर्राया है,
क्या मन में स्वार्थ अब छाया है ?
ऐ मेरी प्रियतम ज़िंदगी,
तुम दिखाओ हमें जैसे भी रंग
हर रंग में जीना हमें आता है,
कष्टों में भी मुस्कुराना हमें आता है।
सुख-दु:ख में सदैव साथ दिया,
मैंने भी की तुम्हारी ही बंदगी।
ऐसे ही मेरा जीवन पार कर दो,
प्रियतम ज़िंदगी, प्रियतम ज़िंदगी॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।